शनिवार, 14 सितंबर 2013

लोकतंत्र की हत्या करने पर उतारू उत्तराखंड सरकार और लोकसेवक

लोकतंत्र की हत्या करने पर उतारू उत्तराखंड सरकार और लोकसेवक 

क्या हम पाकिस्तान बांग्लादेश जा रहे थे ? क्या हम लाठी-डंडों, बन्दुक, बमों को लेकर जा रहे थे ? नहीं | फिर क्यों उत्तराखंड सरकार ने पुलिस के माध्यम से जबरन हमारी पद यात्रा को रुकवा दिया ? हम शांतिपूर्वक सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषय को लेकर पद यात्रा निकालकर जा रहे थे ताकि आम जनता पर्यावरण के महत्वा को समझे | पूर्व-सूचना के बावजूद हिमालय दिवस के अवसर पर आम आदमी पार्टी उत्तराखंड की पर्यावरण जनजागरण पद यात्रा को पुलिस ने जबरन रोका | भारत में आखिर ये कैसी स्वतंत्रता है ? क्या हम जिन मुख्यमंत्री, राज्यपाल महोदय के तमाम खर्चों को अपने ऊपर ढोह रहे हैं उनसे अपने राज्य का कैसा हो विकास ? कैसे हो सुरक्षा ? कैसे हो पर्यावण संतुलित निर्माण ? कैसे हों रोजगार के मोडल ? जैसे संवेदनशील विषय पर शांतिपूर्वक सुझाव पत्र सोंपने भी नहीं जा सकते हैं ? हम इस पद यात्रा को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल महोदय के पास उत्तराखंड के नवनिर्माण के लिए 10 बिन्दुओं का सुझाव पत्र सोंपने जा रहे थे मगर पुलिस द्वारा हमें पद-यात्रा स्थल पर ही रोक दिया गया फिर जब हमारे दो साथी सिटी मजिस्ट्रेट के पास स्वीकृति के लिए सुझाव पत्र को लेकर गए तो सिटी मजिस्ट्रेट ने हमें पर्यावरण जनजागरण हेतु पद यात्रा निकालने की स्वीकृति देने से ही मना कर दिया | 

क्या यही लोकतंत्र है ? जब हम लोग पद-यात्रा स्थल पर ही धरने पर बैठ गए तो दो घंटे बाद सिटी मजिस्ट्रेट गिरीश गुणवत सुझाव पत्र लेने धरना स्थल पर पहुंचे | उनसे हमने कहा क्यों नहीं हमें जाने दिया गया ? तो सिटी मजिस्ट्रेट गिरीश गुनवंत जी ने कहा आपके द्वारा सूचना नहीं दी गई थी इसलिए हम आपको यात्रा करने की सहमती नहीं दे सकते हैं | 

जब सिटी मजिस्ट्रेट को अवगत करवाया गया की हमारे द्वारा शनिवार यानि दो दिन पहले ही सरकारी अधिकृत मेल एड्रेस पर सूचना दे दी गयी थी तो सिटी मजिस्ट्रेट ने जो जवाब दिया उसको सुनकर हम भौचक्के रह गए | 

सिटी मजिस्ट्रेट का कहना था उत्तराखंड सरकार कंप्यूटर फ्रेंडली नहीं हुई है आपको स्वयं आकर सूचना देनी चाहिए थी ईमेल का सरकार और लोकसेवक संज्ञान नहीं लेते हैं | 

अब आप स्वयं लगा सकते हैं उत्तराखंड की सरकारी मशीनरी और उत्तराखंड सरकार की सूचना तकनीक की प्रणाली कितनी आधुनिक है ? यही कारण है की केदारनाथ आपदा की सूचना सरकार को चार दिन बाद मिली व् आपदा में मारे गए मानवों का आंकड़ा आज तक भी उत्तराखंड सरकार के पास नहीं है फिर अन्य प्राणी जीवन की बात करना ही बेमानी होगा | बहरहाल हमारे द्वारा सिटी मजिस्ट्रेट को निम्न 10 बिन्दुवों का सुझाव-पत्र सोंपा गया आगे देखते हैं उत्तराखंड सरकार उनका क्या और कैसे संज्ञान लेती है ?

"पर्यावरण संतुलित एवं सम्पूर्ण उत्तराखण्ड के नवनिर्माण हेतु विकास का माडल"
महोदय उत्तराखंड सरकार के पास इस समय प्रयाप्त बजट है जिससे उत्तराखंड का नव-निर्माण प्राकृतिक संतुलन के साथ-साथ जनहितकारी भी किया जा सकता है इसके लिए न्याय पंचायत स्तर पर मूलभूत सुविधाओं और रोजगार का मॉडल तैयार करना होगा |
महोदय उत्तराखंड में कुल 670 न्याय पंचायतें हैं जिसके अंतर्गत 15 से 20 ग्राम पंचायतें आती हैं| सरकार को प्रत्येक न्याय पंचायत में एक ऐसा मॉडल विकसित करना होगा ताकि स्थानीय जनता को पर्यावरणीय संतुलित सुविधाएँ और रोजगार के साधन उपलब्ध हो सकें इसके लिए आपको निम्न 10 बिन्दुवों का सुझाव पत्र प्रेषित है: 

1. शिक्षा का मॉडल 
स्कूली शिक्षा, कृषि शिक्षा, योग एवं संस्कृति शिक्षा, आयुर्वेदिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, प्रोधोगिकी शिक्षा, तकनिकी शिक्षा, आपदा प्रबंधन शिक्षा, आत्म रक्षा शिक्षा, एवं खेल शिक्षा का समायोजन किया जाये और प्रदेश में जगह जगह स्थापित किये गए अनावश्यक स्कूल/कालेजों आदि को बंद कर आदर्श शिक्षा परिसर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर तैयार किया जाये|

2. चिकित्सा का मॉडल 
एलोपेथी, आयुर्वेदिक, होमोपेथी का समायोजन कर आधुनिक सुविधा यूक्त चिकित्सालय प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर स्थापित किया जाये|

3. रोजगार का मॉडल
स्थानीय उत्पादन उद्योग, शब्जी उत्पादन, जड़ी-बूटी उत्पादन, फलोत्पादन (सेब, अखरोट, माल्टा, आडू, खुमानी, बुरांश, पुलम, चोलू, हथ-करघा उद्योग, नाशपाती, आम, लीची, अमरुद, हिंसर, बुरांश, काफल, अन्नार, टिमरू आदि हेतु जलवायु मौजूद), दुग्ध डेरी, मधु-पालन, काष्ठ-कला, कंडी उद्योग, भेड़ पालन, साहसिक एवं प्राकृतिक खेल, योग-ध्यान केंद्र, बिक्री केंद्र, पर्यटन हट-नुमा होटल, आवाजाही हेतु ट्रेवल सेवा, लोक कला-लोक फिल्म और संस्कृति उद्योग, विंड उर्जा उद्योग, सोलर उर्जा उद्योग, घराट बिजली उद्योग (1-10 मेगावाट), सूचना एवं सौफ्टवेयर उद्योग आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर रोजगार परिसर स्थापित किया जाये और नियुक्ति न्याय पंचायत परीछेत्र से ही करके जवाब देहि तै की जाये | किसी भी प्रकार के भ्रटाचार और लापरवाही में सेवा समाप्त और सम्पति जब्त करने तक का कढा प्रावधान किया जाये|


4. वित्तीय सुविधोँ का मॉडल
बैंक, सहकारी बैंक, ऐ.टी.एम., जीवन बीमा, चिकिस्ता बिमा, साधारण बीमा आदि का समायोजन कर प्रत्येक प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर वित्तीय परिसर तैयार किया जाये| 

5. खेल का मॉडल
कबडी, गिली-डंडा, पंच-पथरी, खो-खो, फुटबाल, बालीबाल, हाकी, क्रिकेट, बेड-मिन्टन, कुश्ती, बाक्सिंग, टेनिस, स्विमिंग आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर खेल परिसर बनाया जाये| 

6. आवास का मॉडल
उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारियों को मूलभूत सुविधा न मिलने के कारण हमेशा जनता को उसका फल भुगतना पड़ता है और कर्मचारी भी तनाव में रहते हैं जिस कारण सरकार सम्पूर्ण उत्तराखंड में शिक्षा, चिकित्सा आदि धराशाई हो गई है और सरकार नयें नयें प्रयोग कर रही है मगर कोई सफलता सरकार को नहीं मिल रही है | सरकार पी.पी.पी. मोड लागू कर रही है | पी.पी.पी. मोड में आम जनता का शोषण और कर्मचारियों का शोषण होना सुनिश्चित है और जिससे पी.पी.पी. मोड के दूरगामी परिणाम घातक हो सकते हैं | कर्मचारियों को मूलभूत सुविधायें मिलेंगी तो वो अपने परिवारों सहित दुरस्त से दुरस्त छेत्रों में अपनी तनावमुक्त सेवा देंगे जिसके लिए कर्मचारी आवास, छात्र/छात्रा आवास एवं आवासीय कालोनी प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर बनाई जाये और सभी कर्मचारीयों की जवाबदेही तै की जाये|

7. सड़क और निर्माण का मॉडल
सड़क मूलभूल आवश्यकता है मगर सड़क निर्माण में किसी भी सूरत में विस्फोटकों का इस्तमाल न हो| सड़क निर्माण में स्टोन कटर तकनीक का स्तमाल किया जाये साथ ही काटी गई सड़क का मलबा किसी भी सूरत में पहाड़ों से नीचे न गिराया जाये| मलवा नीचे आने के कारण नदी का प्रवाह बाधित करता है और जहाँ नदी नहीं होती है वहां पेड़-पोधों को नुकशान करता है | सड़क कटान का मलवा जहाँ भरान की आवश्यकता है वहां भेजा जाये ताकि कृषि भूमि की मिटटी को सुरक्षित रखा जा सके | प्रत्येक न्याय पंचायत माडलों को दूसरी न्याय पंचायत माडल तक सड़क मार्ग से जोड़ा जाये| सड़क निर्माण "रोड़ मैपिंग" कर बनाई जायें| 


8. बन, बाग़-बगीचे, बागवानी और खेती का चकबंदी कर बने दूरगामी मॉडल 
बन विभाग ने तत्काल मुनाफे के लिए चीड़ के पेड़ों को लगाया था, चीड़ के पेड़ों की जड़ें गहरी नहीं जाती हैं जिस कारण न तो वो मिटटी को बांधे रख पाते हैं और न ही चीड़ के पेड़ों के नीचे कोई पौधे पनप पाते हैं| इतना ही नहीं जंगलों में आग लगने का खतरा सबसे अधिक चीड़ की पत्तियों से होता है और हर साल आग लगने के कारण जंगलों में न जाने कितने पेड़-पौधे और जीव-जंतु इसका शिकार बनते हैं | अब ये स्थिति है की चीड़ के पेड़ों को लगाने की भी आवश्यकता नहीं होती है चीड़ के फल पेड़ में ही पक जाते हैं और दूर-दूर तक चीड़ का बीज हवा के साथ खेतों में पहुँच जाता है जिस कारण चीड़ का पेड़ कहीं भी जम जाता है| चीड़ के पेड़ पर्यावरण के लिए विनाशक बन गए हैं इसे फैलने से रोकना होगा | दूरगामी लाभ-दायक और पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने वाले फलदार पेड़ों को न सिर्फ बाग़ बगीचों में लगाना होगा बल्कि जंगलों में जंगली जानवरों को भरपूर खाना मिले इसलिये वहां भी लगाना होगा| बन विभाग, फल्संरक्षण, बन-निगम और कृषि विभाग को पर्यावरण और जीव-जन्तुओं को ध्यान में रखकर बनों का विकास करना होगा | 

भूस्खलन को रोकने और पानी के श्रोतों को जिन्दा रखने हेतु एकमात्र साधन है वृक्षारोपण और दूब घास का रोपण ताकि मिटटी को बांधा जा सके| उत्तराखंड में जगह-जगह बिखरी खेती की चकबंदी की जाये व नदियों के पानी को ऊपरी हिस्से में पहुंचाया जाये साथ ही बरसाती पानी को रोकने का प्रबंध करके असिंचित भूमि पर फलदार वृक्षों, बागवानी व खेती की जाये ताकि पर्यावरणीय संतुलित रोजगार खड़ा किया जा सके |

9. प्रत्येक गाँव बने पर्यावरण एवं रोजगार प्रदाता 
उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जिसका 65% भू-भाग बन छेत्र में आता है हिमालयी राज्यों पर पूरे देश की जीवन डोर टिकी है यदि ये सुरक्षित नहीं रहे, यदि यहाँ अत्यधिक मानव दखल हुवा, यदि यहाँ बिजली परियोजनायें बनेंगी, यदि यहाँ विस्फोटों का इस्तमाल हुवा, यदि यहाँ की प्रकृति के साथ समन्वय बनाने वाले मूलनिवासियों का प्लायन हुवा, यदि यहाँ पूँजिपति और बाहरी लोगों द्वारा जमीन की खरीद-फरोख्त हुई? तो जीवन डोर कट जाएगी| सरकार पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु उत्तराखंड के हर मूलनिवासी को अपने ही गाँव को हराभरा रखने के लिए लक्ष्य निर्धारित कर नियुक्त करे ताकि गाँव के बेरोजगार युवाओं को आजीविका के लिए गाँव में ही रोजगार मिल जाये और पर्यावरण संतुलन भी बना रहे| 



10. आपदा एवं सामाजिक सुरक्षा और सहायता का मॉडल
उत्तराखंड की भोगोलिक दृष्टि अलग-अलग है बाहरी ब्यक्ति को गाँव गाँव की जानकारी सम्भव नहीं है जिस कारण वो न तो सुरक्षा मुहया करवा पायेंगे और न ही किसी आपदा में सहायक होंगे इसके लिए जिससे ऐसे समय में भारी चूक का होना लाजमी है उत्तराखंड के अन्दर प्रांतीय रक्षक दल, होम गार्ड, एन.सी.सी.कैडेट, युवक मंगल दल, महिला मंगल दल, एस.एस.बी. द्वारा ट्रेंड गुरिल्लाओं की काफी संख्या पहले से मौजूद है और ये सभी स्थानीय निवासी होने के साथ-साथ भोगोलिक परिस्थति से भी अवगत हैं सरकार इन्हें और सक्षम बनाने हेतु एन.डी.आर.एफ. के माध्यम से कड़ा प्रशिक्षण दिलवाए और न्याय पंचायत स्तर पर स्टेट डिजास्टर एंड रिलीफ फोर्स के साथ-साथ नागरिक सुरक्षा और सहायता फोर्स के रूप में तैयार करवाये|


इसके साथ ही सरकार हिमालयी राज्य उत्तराखंड का पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु बाहरी लोगों द्वारा बसागत रोकने के लिए भूमि की खरीद-फरोखत पर रोक लगाये, जल बिजली परियोजनाओं की जगह विंड उर्जा, सोलर उर्जा का विकल्प तैयार करे, निर्माण कार्यों में ब्लास्टों पर पूर्णत: रोक लगाये, अत्यधिक निगम, प्राधिकरण, विभाग, आयोग, निदेशालय आदि छोटे से राज्य उत्तराखंड पर अनावश्यक वित्तीय बोझ बढ़ा रहे हैं, इनको सीमित कर समायोजित किया जाये| सम्पूर्ण उत्तराखंड को इको-सेंसटिव जोन के की तर्ज पर विकसित किया जाए और आजीविका के लिए केंद्र से ग्रीन बोनस की मांग की जाये| 
अंत में हिमालय के बारे में इतना ही कहेंगे हिमालय है तो ग्लेशियर हैं, ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं, नदियाँ हैं तो पेड़ हैं, पेड़ हैं तो आक्सीजन है, आक्सीजन है तो जीवन है और ये सब इस धरती इस हिमालय की बदौलत है | हम इन्सान छोड़ते भी साँस हैं तो उसमे भी जहरीली गैस छोड़ते हैं| 

स:धन्यवाद|

निवेदक: हिमालय बचाओ आन्दोलन |

सम्पर्क: 
भार्गव चन्दोला 
(हिमालय बचाओ आन्दोलनकारी एवं प्रवक्ता, आप आपदा प्रबंधन समिति)
1, राजराजेश्वरी विहार, लोवर नथनपुर, पोस्ट आफिस नेहरुग्राम, देहरादून-248 001
मोबाइल: 09411155139, Email: bhargavachandola@gmail.com

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