गुरुवार, 12 सितंबर 2013

ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं - नदियाँ हैं तो जल, जंगल, पेड़, खेती, वायु है व् इसी से मानव एवं समस्त प्राणी जीवन है

ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं - नदियाँ हैं तो जल, जंगल, पेड़, खेती, वायु है व् इसी से मानव एवं समस्त प्राणी जीवन है

ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं
नदियाँ हैं तो जल, जंगल, खेती, वायु है व् इसी से
मानव एवं समस्त प्राणी जीवन है |

उत्तराखंड में 16-17 तारीख जून, 2013 में भयानक प्राकृतिक आपदा (मानव जनित) आयी जिसमें न सिर्फ उत्तराखंड के बल्कि पूरे भारत के 15 हज़ार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान इस त्रासदी में गँवा दी भले सरकारी आंकड़ा कुछ भी कहता हो मगर हकीकत यही है| प्राकृतिक आपदा तब से लगातार जारी है हर रोज कहीं न कहीं बादल फटना आम बात हो गई है जिससे रोज आम जनता अपनी जान माल गँवा रही हैं|
अब सवाल उठता है आखिर ये प्राकृतिक आपदा आई क्यों?
          भारत के हिमालयी राज्यों के बर्फ के ग्लेशियर न सिर्फ हिमालयी राज्यों के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए जीवन देने का काम करते हैं| इन ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियाँ भारत के पर्यावरण संतुलन को बनाने का काम करती हैं ये हैं तो सम्पूर्ण भारत की कृषि, बन, पशु-पक्षी, जीव-जंतु हैं अगर इनका ही अस्तित्व मिट गया तो सम्पूर्ण भारत का अस्तित्व मिट जायेगा| क्या हम ऐसा चाहते हैं

         गौर से सोचिये जब भारत आजाद हुवा था तो भारत की जनसँख्या मात्र 30 करोड़ थी जो आज बढ़ कर 130 करोड़ हो चुकी है और ये भी सरकारी आंकड़ा है हकीकत भगवान जाने क्योंकि यहाँ बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल आदि देशों के भी करोड़ों लोग अवैध रूप से रहते हैं| हमारे देश में आज़ादी के समय से ही भुखमरी चल रही थी जबकि तब जनसँख्या मात्र 30 करोड़ थी तो आज 130 करोड़ की जनता के लिए खाद्यान कहाँ पैदा होता होगा? कहाँ वो रहते होंगे? क्या वो खाते होंगे ? कहाँ वो चलते होंगे ? कैसे वो चलते होंगे ? क्या हमने कभी इस ओर गौर किया ?
       जनसँख्या के साथ-साथ क्या नहीं बढ़ा ? भवन, गाड़िया, सड़क, कारखाने, होटल, मॉल, दुकान, रेल, जहाज, मोबाइल, टीवी, फ्रिज, एसी, कूलर, पंखे, बल्ब, प्लास्टिक, लोहा, कांच, कोयला, तेल, गैस, चूल्हा, चिमनी, कम्प्यूटर, फैक्स, फोटो स्टेट, बिजली परियोजना, मोटर, बैट्री, टाइल, ईंट, सीमेंट, पेंट, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च, आश्रम खिलोने आदि ? ये सब बढ़ा है और बेतहाशा बढ़ा है| नहीं बढ़ी तो जहाँ इनको स्थापित किया जाता है वो जमीन वो पृथ्वी और न ही वो बढ़ सकती है| जिसका हमे गहनता से संज्ञान लेना होगा|
         भौतिकतावाद को पूरा करने में केवल जमीन का इस्तमाल हुआ है हम ये भूल गए की जितनी जनसँख्या बढ़ेगी उतनी ही भौतिकवादी वस्तुवें बढ़ेंगी और उसके लिए जमीन की आवश्यकता पड़ेगी जिस कारण लगातार कंक्रीट के जंगल खड़े होते जा रहे हैं जो इस धरती के लिए और यहाँ के पर्यावरण संतुलन के लिए विनाशक साबित हो रहे हैं| जिसके परिणाम अब आये दिन दिख रहे हैं| क्या हम इस धरती को समाप्त करने की ओर कदम नहीं बढ़ा रहे ?
        हिन्दू हो या मुसलमान सिख हो या इसाई, पूंजीपति हो या गरीब इन सबका अस्तित्व तभी है जब ये धरती होगी, जब इसका पर्यावरण सुरक्षित होगा, जब यहाँ पीने का पानी, खाद्यान, और साँस लेने के लिए शुद्ध हवा होगी| और ऐसा तभी संभव है जब यहाँ सिमित जनसँख्या, सिमित भौतिक उत्पादन होगा


हिमालयी राज्यों का चाहिए पर्यावरणीय संतुलित नव-र्निर्माण 
          उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य के साथ-साथ अत्यधिक संवेदनशील अन्तराष्ट्रीय सीमांत प्रदेश भी है इसकी अनदेखी भारत के लिए न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी घातक है| उत्तराखंड में पूंजीपतियों और ठेकेदारों ने सरकार की लापरवाही और भ्रस्टाचार के कारण प्रकृति का घोर अनैतिक दोहन किया है| बारूदी विस्फोटों से सड़कें, भवन और सुरंग का निर्माण पहाड़ी जिलों के लिए विनाशक साबित हो रही हैं पहाड़ छलनी होकर दरक रहे हैं जिस कारण लगातार बादल फटने, भूस्खलन की घटनाएँ आम बात हो गई हैं और इसी का नतीजा है आज हमे इतनी बड़ी त्रासदी को झेलना पड़ा है| स्थानीय लोगों के पलायन के कारण पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया है वो जानते हैं कैसे वो अपने खेत, खलियान और जल-जंगल को सुरक्षित रख सकते हैं | जब तक वो अपने जंगलों की सुरक्षा खुद करते थे तो वो जंगल सुरक्षित थे वो रात-रात भर जंगलों में आग भुझाने का काम करते थे| मगर पूंजीपतियों की जब से इन पहाड़ों, इन नदियों, इन तीर्थ स्थलों और इन पर्यटक स्थलों पर नजर लगी और उन्होंने इसका दोहन शुरू किया तो परिणाम आपके सामने है|

बदलना होगा विकास का मोडल 
          उत्तराखंड की सरकारों ने जिसे विकास का रथ माना था वो आज न सिर्फ उत्तराखंड के लिए बल्कि देश के लिए भी विनाशक साबित हो रहा है| बिजली परियोजना, डैम, डैमों का मलबा, अत्याधिक् मानव दखल, अत्यधिक तीर्थ यात्री, अत्यधिक पर्यटक, नदी का अतिक्रमण, अत्यधिक गाड़ियाँ, अत्यधिक होटल, अत्यधिक धर्मशालायें और उनसे निकलने वाला प्रदुषण, ये सब इस हिमालय के लिए विनाशक हैं और ग्लेशियरों का अस्तित्व ख़तम कर रहे हैं जो सम्पूर्ण भारत के लिये विनाशक हो रहा है | हिमालयी राज्य उत्तराखंड में फलोत्पादन, कृषि, बागवानी, जड़ी-बूटी, फूलोत्पदन, दुग्ध उत्पादन, भेड़ पालन, मधु-मक्खी पालन, सॉफ्टवेयर पार्क, सौर उर्जा, विंड उर्जा आदि की अपार सम्भावनाएं हैं जिनसे प्लायन रोकने, रोजगार देने के साथ-साथ पर्यावरणीय संतुलन बनाया जा सकता है|

          उत्तराखंड को प्लायन मुक्त बनाने और हिमालय को बचाने के लिए योजना कारगर और दूरगामी होनी चाहिए| जहाँ मूलभूत सुविधाओं की कहीं कोई कमी न हो व् जब मूलभूत सुविधाएँ होंगी तभी रोजगार की अपार संभावनाओं का लाभ उत्तराखंड की आम जनता उठा सकती है
          शिक्षा की गुणवत्ता में भारी कमी के कारण सबसे अधिक पलायन पहाड़ों से हुवा है इस बात को मैंने "हिमालय बचाओ आन्दोलन" के 16 दिन की "गाँव चलो समस्या जानो" के 100 गांवों के पैदल यात्रा के दौरान स्वयं अपनी आँखों से देखा है जो कि हमने अभी-अभी 3 मई से 18 मई, 2013 में की थी|

"पर्यावरण संतुलित एवं सम्पूर्ण उत्तराखण्ड के नवनिर्माण हेतु विकास का माडल":- उत्तराखंड सरकार के पास इस समय प्रयाप्त बजट है जिससे उत्तराखंड का नव-निर्माण प्राकृतिक संतुलन के साथ-साथ जनहितकारी भी किया जा सकता है चूँकि उत्तराखंड के पहाड़ों में छोटे-छोटे गाँव हैं और संख्या कम है इसलिए न्याय पंचायत स्तर पर मूलभूत सुविधाओं और रोजगार का मॉडल तैयार करना होगा |
        उत्तराखंड में कुल 670 न्याय पंचायतें हैं जिसके अंतर्गत 15 से 20 ग्राम पंचायतें आती हैं| सरकार को प्रत्येक न्याय पंचायत में एक ऐसा मॉडल विकसित करना होगा ताकि स्थानीय जनता को पर्यावरणीय संतुलित सुविधाएँ और रोजगार के साधन उपलब्ध हो सकें इसके लिए निम्न 10 बिन्दुवों पर अमल करना होगा:
1. शिक्षा का मॉडल :- स्कूली शिक्षा, कृषि शिक्षा, योग एवं संस्कृति शिक्षा, आयुर्वेदिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, प्रोधोगिकी शिक्षा, तकनिकी शिक्षा, आपदा प्रबंधन शिक्षा, आत्म रक्षा शिक्षा, एवं खेल शिक्षा का समायोजन किया जाये और प्रदेश में जगह जगह स्थापित किये गए अनावश्यक स्कूल/कालेजों आदि को बंद कर आदर्श शिक्षा परिसर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर तैयार किया जाये|
2. चिकित्सा का मॉडल:- एलोपेथी, आयुर्वेदिक, होमोपेथी का समायोजन कर आधुनिक सुविधा यूक्त चिकित्सालय प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर स्थापित किया जाये|
3. रोजगार का मॉडल:- स्थानीय उत्पादन उद्योग, शब्जी उत्पादन, जड़ी-बूटी उत्पादन, फलोत्पादन (सेब, अखरोट, माल्टा, आडू, खुमानी, बुरांश, पुलम, चोलू, हथ-करघा उद्योग, नाशपाती, आम, लीची, अमरुद, हिंसर, बुरांश, काफल, अन्नार, टिमरू आदि हेतु जलवायु मौजूद), दुग्ध डेरी, मधु-पालन, काष्ठ-कला, कंडी उद्योग, भेड़ पालन, साहसिक एवं प्राकृतिक खेल, योग-ध्यान केंद्र, बिक्री केंद्र, पर्यटन हट-नुमा होटल, आवाजाही हेतु ट्रेवल सेवा, लोक कला-लोक फिल्म और संस्कृति उद्योग, विंड उर्जा उद्योग, सोलर उर्जा उद्योग, घराट बिजली उद्योग (1-10 मेगावाट), सूचना एवं सौफ्टवेयर उद्योग आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर रोजगार परिसर स्थापित किया जाये और नियुक्ति न्याय पंचायत परीछेत्र से ही करके जवाब देहि तै की जाये| किसी भी प्रकार के भ्रटाचार और लापरवाही में सेवा समाप्त और सम्पति जब्त करने तक का कढा प्रावधान किया जाये|

4. वित्तीय सुविधोँ का मॉडल: बैंक, सहकारी बैंक, ऐ.टी.एम., जीवन बीमा, चिकिस्ता बिमा, साधारण बीमा आदि का समायोजन कर प्रत्येक प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर वित्तीय परिसर तैयार किया जाये

5. खेल का मॉडल:- कबडी, गिली-डंडा, पंच-पथरी, खो-खो, फुटबाल, बालीबाल, हाकी, क्रिकेट, बेड-मिन्टन, कुश्ती, बाक्सिंग, टेनिस, स्विमिंग आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर खेल परिसर बनाया जाये

6. आवास का मॉडल:- उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारियों को मूलभूत सुविधा न मिलने के कारण हमेशा जनता को उसका फल भुगतना पड़ता है और कर्मचारी भी तनाव में रहते हैं जिस कारण सरकार सम्पूर्ण उत्तराखंड में शिक्षा, चिकित्सा आदि धराशाई हो गई है और सरकार नयें नयें प्रयोग कर रही है मगर कोई सफलता सरकार को नहीं मिल रही है | सरकार पी.पी.पी. मोड लागू कर रही है | पी.पी.पी. मोड में आम जनता का शोषण और कर्मचारियों का शोषण होना सुनिश्चित है और जिससे पी.पी.पी. मोड के दूरगामी परिणाम घातक हो सकते हैं | कर्मचारियों को मूलभूत सुविधायें मिलेंगी तो वो अपने परिवारों सहित दुरस्त से दुरस्त छेत्रों में अपनी तनावमुक्त सेवा देंगे जिसके लिए कर्मचारी आवास, छात्र/छात्रा आवास एवं आवासीय कालोनी प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर बनाई जाये और सभी कर्मचारीयों की जवाबदेही तै की जाये|

7. सड़क और निर्माण का मॉडल:- सड़क मूलभूल आवश्यकता है मगर सड़क निर्माण रोड़ मैपिंग कर बनाई जायें और निर्माण में किसी भी सूरत में विस्फोटकों का इस्तमाल न हो| सड़क निर्माण में स्टोन कटर तकनीक का स्तमाल किया जाये साथ ही काटी गई सड़क का मलबा किसी भी सूरत में पहाड़ों से नीचे न गिराया जाये| मलवा नीचे आने के कारण नदी का प्रवाह बाधित करता है और जहाँ नदी नहीं होती है वहां पेड़-पोधों को नुकशान करता है | सड़क कटान का मलवा जहाँ भरान की आवश्यकता है वहां भेजा जाये ताकि कृषि भूमि की मिटटी को सुरक्षित रखा जा सके | प्रत्येक न्याय पंचायत माडलों को दूसरी न्याय पंचायत माडल तक सड़क मार्ग से जोड़ा जाये

 8. बन, बाग़-बगीचे, बागवानी और खेती का चकबंदी कर बने दूरगामी मॉडल:- बन विभाग ने तत्काल मुनाफे के लिए चीड़ के पेड़ों को लगाया था, चीड़ के पेड़ों की जड़ें गहरी नहीं जाती हैं जिस कारण न तो वो मिटटी को बांधे रख पाते हैं और न ही चीड़ के पेड़ों के नीचे कोई पौधे पनप पाते हैं| इतना ही नहीं जंगलों में आग लगने का खतरा सबसे अधिक चीड़ की पत्तियों से होता है और हर साल आग लगने के कारण जंगलों में न जाने कितने पेड़-पौधे और जीव-जंतु इसका शिकार बनते हैं | अब ये स्थिति है की चीड़ के पेड़ों को लगाने की भी आवश्यकता नहीं होती है चीड़ के फल पेड़ में ही पक जाते हैं और दूर-दूर तक चीड़ का बीज हवा के साथ खेतों में पहुँच जाता है जिस कारण चीड़ का पेड़ कहीं भी जम जाता है| चीड़ के पेड़ पर्यावरण के लिए विनाशक बन गए हैं इसे फैलने से रोकना होगा | दूरगामी लाभ-दायक और पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने वाले फलदार पेड़ों को न सिर्फ बाग़ बगीचों में लगाना होगा बल्कि जंगलों में जंगली जानवरों को भरपूर खाना मिले इसलिये वहां भी लगाना होगा| बन विभाग, फल्संरक्षण, बन-निगम और कृषि विभाग को पर्यावरण और जीव-जन्तुओं को ध्यान में रखकर बनों का विकास करना होगा
      भूस्खलन को रोकने और पानी के श्रोतों को जिन्दा रखने हेतु एकमात्र साधन है वृक्षारोपण और दूब घास का रोपण किया जाये ताकि दूब घास और पेड़ों की जड़ें मिटटी को बांध कर भूस्खलन होने से रोक सके| 
    उत्तराखंड की आम जनता की जगह-जगह बिखरी खेती की चकबंदी की जाये व नदियों के पानी को ऊपरी हिस्से में पहुंचाया जाये साथ ही बरसाती पानी को रोकने का प्रबंध करके असिंचित भूमि पर फलदार वृक्षों, बागवानी खेती की जाये ताकि पर्यावरणीय संतुलित रोजगार खड़ा किया जा सके|

9. प्रत्येक गाँव बने पर्यावरण एवं रोजगार प्रदाता:- उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जिसका 65% भू-भाग बन छेत्र में आता है हिमालयी राज्यों पर पूरे देश की जीवन डोर टिकी है यदि ये सुरक्षित नहीं रहे, यदि यहाँ अत्यधिक मानव दखल हुवा, यदि यहाँ बिजली परियोजनायें बनेंगी, यदि यहाँ विस्फोटों का इस्तमाल हुवा, यदि यहाँ की प्रकृति के साथ समन्वय बनाने वाले मूलनिवासियों का प्लायन हुवा, यदि यहाँ पूँजिपति और बाहरी लोगों द्वारा जमीन की खरीद-फरोख्त हुई? तो जीवन डोर कट जाएगी| सरकार पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु उत्तराखंड के हर मूलनिवासी को अपने ही गाँव को हराभरा रखने के लिए लक्ष्य निर्धारित कर नियुक्त करे ताकि गाँव के बेरोजगार युवाओं को आजीविका के लिए गाँव में ही रोजगार मिल जाये और पर्यावरण संतुलन भी बना रहे| 
10. आपदा एवं सामाजिक सुरक्षा और सहायता का मॉडल:- उत्तराखंड की भोगोलिक दृष्टि अलग-अलग है बाहरी ब्यक्ति को गाँव गाँव की जानकारी सम्भव नहीं है जिस कारण वो न तो सुरक्षा मुहया करवा पायेंगे और न ही किसी आपदा में सहायक होंगे इसके लिए जिससे ऐसे समय में भारी चूक का होना लाजमी है उत्तराखंड के अन्दर प्रांतीय रक्षक दल, होम गार्ड, एन.सी.सी.कैडेट, युवक मंगल दल, महिला मंगल दल, एस.एस.बी. द्वारा ट्रेंड गुरिल्लाओं की काफी संख्या पहले से मौजूद है और ये सभी स्थानीय निवासी होने के साथ-साथ भोगोलिक परिस्थति से भी अवगत हैं सरकार इन्हें और सक्षम बनाने हेतु एन.डी.आर.एफ. के माध्यम से कड़ा प्रशिक्षण दिलवाए और न्याय पंचायत स्तर पर स्टेट डिजास्टर एंड रिलीफ फोर्स के साथ-साथ नागरिक सुरक्षा और सहायता फोर्स के रूप में तैयार करवाये|

       इसके साथ ही सरकार हिमालयी राज्य उत्तराखंड का पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु बाहरी लोगों द्वारा बसागत रोकने के लिए भूमि की खरीद-फरोखत पर रोक लगाये, जल बिजली परियोजनाओं की जगह विंड उर्जा, सोलर उर्जा का विकल्प तैयार करे, निर्माण कार्यों में ब्लास्टों पर पूर्णत: रोक लगाये, अत्यधिक निगम, प्राधिकरण, विभाग, आयोग, निदेशालय आदि छोटे से राज्य उत्तराखंड पर अनावश्यक वित्तीय बोझ बढ़ा रहे हैं, इनको सीमित कर समायोजित किया जाये| सम्पूर्ण उत्तराखंड को इको-सेंसटिव जोन के की तर्ज पर विकसित किया जाए और आजीविका के लिए केंद्र से ग्रीन बोनस की मांग की जाये| 

     अंत में हिमालय के बारे में इतना ही कहूँगा हिमालय है तो ग्लेशियर हैं, ग्लेशियर हैं तो नदियाँ हैं, नदियाँ हैं तो पेड़ हैं, पेड़ हैं तो आक्सीजन है, आक्सीजन है तो जीवन है और ये सब इस धरती इस हिमालय की बदौलत है | हम इन्सान छोड़ते भी साँस हैं तो उसमे भी जहरीली गैस छोड़ते हैं


भार्गव चन्दोला
(हिमालय बचाओ आन्दोलनकारी)
1, राजराजेश्वरी विहार, लोवर नथनपुरपोस्ट आफिस नेहरुग्राम, देहरादून-248 001
सम्पर्क: 09411155139, 
Email: bhargavachandola@gmail.combhargavachandola@gmail.com

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