गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

अब आप ही बता दो मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ?

अब आप ही बता दो मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ? 
कोयले की खान लिखूं या मनमोहन बेईमान लिखूं ? 
पप्पू पर जोक लिखूं या गुंडाराज मुलायम लिखूं ? 
सी.बी.आई. बदनाम लिखूं या जस्टिस गांगुली महान लिखूं ? 
शीला की विदाई लिखूं या लालू की रिहाई लिखूं ? 
'रामदेव’ की रामलीला लिखूं या भाजपा का प्यार लिखूं ? 
भ्रष्टतम् सरकार लिखूँ या प्रशासन बेकार लिखू ? 
महँगाई की मार लिखूं या गरीबों का बुरा हाल लिखू ? 
भूखा इंसान लिखूं या बिकता ईमान लिखूं ?
आत्महत्या करता किसान लिखूँ या शीश कटे जवान लिखूं ?
विधवा का विलाप लिखूँ, या अबला की चीत्कार लिखू ?
दिग्गी का 'टंच माल' लिखूं या करप्शन विकराल लिखूँ ?
अजन्मी बिटिया मारी जाती लिखू, या सयानी बिटिया ताड़ी जाती लिखू?
दहेज हत्या, शोषण, बलात्कार लिखूं या टूटे हुए घरोदों का हाल लिखूँ ?
गद्दारों के हाथों में तलवार लिखूं या हो रहा भारत निर्माण लिखूँ ?
जाति और सूबों में बंटा देश लिखूं या बीस दलो की लंगड़ी सरकार लिखूँ ?
नेताओं का महंगा आहार लिखूं या 5 रुपये की भरपेट थाल लिखूं ?
अब आप ही बता दो मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ?
खेलने का मन करता है तो - कलमाडी याद आ जाता है.
पढ़ने का मन करता है तो - आरक्षण याद आ जाता है.
रोने का दिल करता है तो - सोनिया का बटला हाउस वाला आँसू याद आ जाता है.
सोचता हूँ की पागल हो जाऊं तो - दिग्विजय सिंह याद आ जाता है.
सोचता हूँ की मुहं बंद रखूं तो - मनमोहन सिंह याद आ जाता है.
सोचता हूँ की लोगों की सेवा करूँ तो - झूठे सपने दिखाने वाला "अरविंद केजरीवाल" याद आ जाता है.
सोचता हूँ कि कांग्रेस को भूल जाऊं - तो माँ भारती का जख़्म याद आ जाता है,
सोचता हूँ तो आशा कि किरण "लाल बहादुर शाश्त्री" याद आ जाते हैं,
"भारत माता की जय"
वंदेमातरम्, जय हिंद - जय भारत

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें