शनिवार, 31 मई 2014

दूर से कौवा भी अपने आप को बाज समझता है

Hafiz Sahid, Pakistan में बैठ कर गुर्राता है,
अब भारत के खिलाफ़ आखिरी ज़ेहाद का वक्त आ गया है,
खुद पाकिस्तान में बैठा है और मासूमों को बरगलाता है,
सच मानों दोस्त, ऐसा करने में हाफिज शहीद के बाप का क्या जाता है,
मरेगा वो जो हाफिज़ शहीद के कहने पर भारत में जेहाद में शामिल होगा,
इतिहास गवाह है, भले कुछ लोगों को जेहादियों ने मार भी गिराया हो,
मगर अंत में जेहादी खुद मौत के घाट उतर जाता है,
हाफ़िज शहीद पाकिस्तान में बैठकर मौज उड़ाता है,
है दम, तो भारत में रहकर ज़ेहाद नामक जहर घोलने का काम करे ?
हाफ़िज जानता है, दुसरे की जान दांव पर लगाई जा सकती है, अपनी नहीं,
मगर वो मासूम नहीं जानते जिन्हें हाफिज़ शहीद का नेटवर्क छोटे-छोटे लालच देकर
ज़ेहाद के दोजख में धकेल देता है जहाँ से वापसी के नाम पर केवल मौत ही मिलती है,
और बिलखते रह जाते हैं उन मासूमों के माता-पिता जीवनभर,
हाफिज़ शहीद दूसरों की जान की कीमत के लिए पैसे लेता है, अपनी जान के नहीं,
अपनी जान तो हर चालाक आदमी को प्यारी होती है जैसे हाफ़िज शहीद को है |
.
बदलेगा भारत, जब होगा भाईचारे के साथ पर्यावरणीय संतुलित विकास |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें