बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

"2 अक्टूबर अहिंसा दिवस या काला दिवस"

2 अक्टूबर अहिंसा के मार्गदर्शक महात्मा गाँधी का जन्मदिन, पूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन हमारे लिए कितनी खुशी का दिन होना चाहिए था एक तरफ दो महान विभूतियों का जन्मदिन मगर दूसरी तरफ 2 अक्टूबर 1994 का वो काला दिन भूले नहीं भूलता है | 

आज ही के दिन 1994 में उत्तराखंड प्रदेश की मांग करने के लिए उत्तराखंड के निहत्ते भोलेभाले लोग शांतिपूर्ण ढंग से देश की राजधानी देल्ही जा रहे थे मगर उनको तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की उत्तर प्रदेश सरकार ने रामपुर तिराहे पर रोक दिया और अचानक पुलिस, पी.ऐ.सी. एवं पुलिस की वर्दी में सपाई गुंडों द्वारा उनपर गोलियों की बौछार कर दी | 
प्रत्यक्ष दर्शी बताते हैं पुलिस की गोलियों की बौछार के बाद निहत्ते लोगों में भगदड़ मच गई जिनमें महिलाएं, लड़कियां, युवा, वृद्धजन सभी मौजूद थे, वो चिलाते रहे मगर बर्बरता थी की थमने का नाम नहीं ले रही थी | सपाई गुंडों और कानून के रखवालों ने महिलाओं एवं लड़कियों की बह्शियाने तरीके से आबरू-लूट कर उनके अंगों तक को बेरहमी से काट डाला और इसके साथ-ही-साथ सम्पूर्ण उत्तराखंड में पुलिस-पी.ऐ.सी. का आम जनता पर बेरहम तांडव शुरू हो गया जहाँ भी उन्हें कोई दीखता बेरहम तरीके से मारते इतना ही नहीं पुलिस-पी.ऐ.सी. द्वारा मासूम लोगों को घरों से खींच कर बेरहम तरीके से मारा पीटा गया कुछ वाक्य श्रीनगर, पौड़ी में मैंने अपनी आखों से भी देखे हैं | 
आखिर कैसे इस काले दिवस को हम अहिंसा दिवस के रूप में मनायें ? जबकि तत्कालीन मुख्यमंत्री, मुलायम सिंह, डी.जी.पी., एस.एस.पी., जिलाधिकारी, तत्कालीन सपाई गुंडे, पुलिस, पी.ऐ.सी. किसी को भी कानून द्वारा न तो दोषी साबित किया गया न ही किसी को सजा दी गई| 
9 नवम्बर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड का गठन हुवा उम्मीद थी अब शहीदों को उनके आश्रितों को न्याय मिलेगा और दोषियों के खिलाफ उत्तराखंड सरकार कढ़ी पैरवी करवाकर सजा दिलवाएगी मगर कुर्सी पर बैठते आ रहे बेश्रम उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, मंत्री सब भूल बैठे और दो अक्टूबर पर शहीदों के पुतलों पर माला चढ़ाकर फूले नहीं समाते आ रहे हैं |  
शर्म आनी चाहिए प्रमाण पत्र धारी उन लोगों को जो अपने आप को उत्तराखंड आन्दोलनकारी कहते हैं और जगह-जगह अपने लिए आरक्षण की मांग करते हैं जबकि शहीदों के हत्यारे आज भी खुलेआम घूम रहे हैं |
मेरे लिए ये दिन तब तक काला दिवस रहेगा जब तक शहीदों को न्याय नहीं मिल जाता है जब तक शहीदों के सपनों का उत्तराखंड नहीं बन जाता है |  
मैं उन सभी शहीदों को नमन करता हूँ जिन्होंने अपने प्राणों का बलिदान उत्तराखंड राज्य के लिए दिया और लानत भेजता हूँ उन सभी पर जो आज उन शहीदों के सपनों के उत्तराखंड को छिन-भिन्न कर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं| 

भार्गव चन्दोला
(हिमालय बचाओ आन्दोलनकारी)
1, राजराजेश्वरी विहार, लोवर नथनपुर 
देहरादून| 

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