रविवार, 27 अप्रैल 2014

स्वदेशी और विदेशी चिकित्सा के नाम पर देश की जनता में जहर घोलती भाजपा

रात आयुर्वेद के पूर्व उप-निदेशक डा. विनोद बहुगुणा "सामंत" जी के घर देवी रोड़ कोटद्वार में रुके लम्बी चर्चा में डा विनोद बहुगुणा जी ने बताया आयुष के नाम पर बी.जे.पी. सरकार जनता को धोका दे रही है, चिकित्सा शास्त्र में आधारहीन सैधांतिक विवेध के बावजूद कथित आयुर्वेद और कथित एलोपैथी को प्रतिद्वंदी बनाकर देश की श्रमजीवी आम जनता को संविधान प्रदत आधारभूत वैज्ञानिक चिकित्सा सुविधाओं से वंचित कर सांस्कृतिक संवर्धन की आड़ में वोट ध्रुविकरण का सडयंत्र करती आ रही है | जबकि आवश्यकता इस बात की है कि एक ही चिकित्सा शास्त्र के प्राचीन एवं आधुनिक विज्ञानं को समाहित कर अखिल भारतीय स्तर पर एक सर्वस्वीकार्य एंव धरातल पर जनउपयोगी चिकित्सा पाठ्यक्रम तैयार किया जाये | उल्लेखनीय है कि आज़ादी के बाद यह व्यवस्था लागू की गई थी जिसे राजनीतिक लाभ के लिए स्वदेशी विदेशी का जहर फैलाकर बंद कर दिया गया | जबकि चैम्बर के अंग्रेजी शब्द कोष में एलोपैथी का अर्थ निम्न प्रकार से परिभाषित है "THE CURRENT OR ORTHODOX MEDICAL PRACTICE, DISTINGUISHED FROM HOMEOPATHY यानि होमियोपैथी से भिन्न वर्तमान एवं पुरातन/पारंपरिक चिकित्सा कर्म का नाम ही एलोपैथी है"|
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संभवतः इसी पीड़ा के कारण डा. विनोद बहुगुणा "सामंत" ने ये पंक्तिया उस दौरान लिखी होंगी
आज मेरे गाँव में गो-गंगा धाम में, संविधान बिक रहा "निशंक" की दुकान में
यहाँ वहां हर कहीं संजीवनी का शोर है, विश्वगुरु प्रान्त में सुल्तान घूसखोर है,
विकास ढोल-पोल यहाँ, भ्रष्ट हाकिम जिन है,
ग्राम स्वास्थ्य दुर्दशा पर, आम आदमी खंडूड़ी से भी खिन्न है
कोशियारी उद्द्विग्न है सत्ता के शुरुर में,
इंद्र देव टून है, आडवाणी गंगा स्पर्श नयाँ महाकुम्भ है,
लूट की नईं योजना गडकरी की मति पर
सारा सूबा सन्न है,
जनआक्रोश प्रचंड है

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

PLEASE DONATE/VOTE/SUPPORT FOR SAVE UTTARAKHAND, SAVE INDIA

प्यारे देशवाशियों एवं प्रवासियों, आपदा से घायल उत्तराखंड जो पुरे देश का पानी, पर्यावरण संतुलन का श्रोत है में व्यवस्था परिवर्तन का आन्दोलन चल रहा है लोग भाई अरविंद केजरीवाल द्वारा चलाई गई इस मुहिम के साथ बढ़ी आशा के साथ जुड़ रहे हैं मगर आर्थिक रूप से कमजोर उत्तराखंड में संसाधनों का भारी अकाल है, भोगोलिक रूप से अत्यधिक चुनौतीपूर्ण और पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण आम जन तक पहुँचने के लिए प्रतियाशियों के पास न तो कार्यकर्त्ता हैं और न संसाधन, 4-4 सौ किलोमीटर क्षेत्र में फैली लोकसभा में कार्य करना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है और उत्तराखंड के प्रतियाशियों को अब तक चंदा भी न के बराबर मिला है | इस मुहिम में जहाँ भाई अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ आप कन्धा-से कन्धा मिला कर चल रहे हैं आप से निवेदन है भाई अरविंद के साथ ही उनके साथियों को भी सहयोग करें |
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आम आदमी पार्टी के उत्तराखंड से जो प्रतियाशी हैं वो न केवल योग्य हैं अपितु कर्मठ भी हैं, मगर आपके सहयोग के बिना अधूरे हैं अत: आप से निवेदन हैं आप बढ़-चढ़ कर इन योग्य प्रतियाशियों को चंदा व समय देकर इन्हें मजबूत करने में सहयोग करें और उत्तराखंड से मजबूत और योग्य प्रतियाशी संसद में भेजें ताकि उत्तराखंड में जल, जंगल, जमीन, पलायन, रोजगार, सुरक्षा की आवाज संसद में मजबूती से उठाई जा सके |
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421 Uttarakhand Almora Harish Chandra Arya अब तक प्राप्त 8 हज़ार
http://myaap.in/donate4almora
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422 Uttarakhand Garhwal Dr. Rakesh Singh अब तक प्राप्त 60 हज़ार
http://myaap.in/donate4garhwal
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423 Uttarakhand Hardwar Kanchan ChoudharyBhattacharya अब तक प्राप्त 12 लाख
http://myaap.in/donate4hardwar
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424 Uttarakhand Nainital Balli Singh Cheema अब तक प्राप्त 50 हज़ार
http://myaap.in/donate4nainital
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425 Uttarakhand Tehri Garhwal Anoop Nautiyal अब तक प्राप्त 11 लाख
http://myaap.in/donate4tehrigarhwal
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PLEASE DONATE/VOTE/SUPPORT FOR SAVE UTTARAKHAND, SAVE INDIA
JOIN AAP FOR CHANGE THE POLITICAL SYSTEM,
JOIN AAP FOR SWARAJ,
JOIN AAP FOR GOOD GOVERNANCE,
JOIN AAP FOR GOOD HEALTH FACILITIES,
JOIN AAP FOR GOOD EDUCATION,
JOIN AAP FOR GOOD ENVIRONMENT,
JOIN AAP FOR GOOD ECONOMY,
JOIN AAP FOR CLEAN INDIA,
JOIN AAP FOR WOMAN SAFETY,
JOIN AAP FOR CHILD SAFETY,
JOIN AAP FOR FARMER SAFETY,
JOIN AAP FOR CITIZEN RESPECT.
JOIN AAP FOR SAVE INDIA.
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7 मई को “झाड़ू” के चुनाव-चिन के सामने वाला बटन दबायें|
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कृपया बढ़-चढ़ कर चंदा दें, समर्थन करें, वोट कर राजनीतिक गंदगी साफ़ करके स्वच्छ भारत का निर्माण करें|
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बदलेगा उत्तराखंड, बदलेगा भारत

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

अब आप ही बता दो मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ?

अब आप ही बता दो मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ? 
कोयले की खान लिखूं या मनमोहन बेईमान लिखूं ? 
पप्पू पर जोक लिखूं या गुंडाराज मुलायम लिखूं ? 
सी.बी.आई. बदनाम लिखूं या जस्टिस गांगुली महान लिखूं ? 
शीला की विदाई लिखूं या लालू की रिहाई लिखूं ? 
'रामदेव’ की रामलीला लिखूं या भाजपा का प्यार लिखूं ? 
भ्रष्टतम् सरकार लिखूँ या प्रशासन बेकार लिखू ? 
महँगाई की मार लिखूं या गरीबों का बुरा हाल लिखू ? 
भूखा इंसान लिखूं या बिकता ईमान लिखूं ?
आत्महत्या करता किसान लिखूँ या शीश कटे जवान लिखूं ?
विधवा का विलाप लिखूँ, या अबला की चीत्कार लिखू ?
दिग्गी का 'टंच माल' लिखूं या करप्शन विकराल लिखूँ ?
अजन्मी बिटिया मारी जाती लिखू, या सयानी बिटिया ताड़ी जाती लिखू?
दहेज हत्या, शोषण, बलात्कार लिखूं या टूटे हुए घरोदों का हाल लिखूँ ?
गद्दारों के हाथों में तलवार लिखूं या हो रहा भारत निर्माण लिखूँ ?
जाति और सूबों में बंटा देश लिखूं या बीस दलो की लंगड़ी सरकार लिखूँ ?
नेताओं का महंगा आहार लिखूं या 5 रुपये की भरपेट थाल लिखूं ?
अब आप ही बता दो मैं इस जलती कलम से क्या लिखूं ?
खेलने का मन करता है तो - कलमाडी याद आ जाता है.
पढ़ने का मन करता है तो - आरक्षण याद आ जाता है.
रोने का दिल करता है तो - सोनिया का बटला हाउस वाला आँसू याद आ जाता है.
सोचता हूँ की पागल हो जाऊं तो - दिग्विजय सिंह याद आ जाता है.
सोचता हूँ की मुहं बंद रखूं तो - मनमोहन सिंह याद आ जाता है.
सोचता हूँ की लोगों की सेवा करूँ तो - झूठे सपने दिखाने वाला "अरविंद केजरीवाल" याद आ जाता है.
सोचता हूँ कि कांग्रेस को भूल जाऊं - तो माँ भारती का जख़्म याद आ जाता है,
सोचता हूँ तो आशा कि किरण "लाल बहादुर शाश्त्री" याद आ जाते हैं,
"भारत माता की जय"
वंदेमातरम्, जय हिंद - जय भारत

शनिवार, 22 मार्च 2014

बदलेगा उत्तराखंड, बदलेगा भारत - सम्पूर्ण उत्तराखंड के विकास हेतु हमारी सोच - हमारा संकल्प


त्तराखंड में जहाँ एक ओर देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंहनगर जैसे मैदानी व बेतरतीब विकसित जनपद आते हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, अल्मोड़ा, पिथौड़ागढ़, बागेश्वर, चम्पावत, नैनीताल जैसे पिछड़े व पलायन का दंश झेल रहे पर्वतीय जनपद हैं |  
      यह प्रदेश अपनी अलग-अलग स्थितियों के कारण कई तरह की आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है| इन चुनौतियों के प्रति जन प्रतिनिधियों की बेरुखी के कारण जगह-जगह बड़ा असंतोष है और लोग सम्पूर्ण उत्तराखंड के संतुलित विकास के लिए आंदोलन कर रहे हैं| 
      यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है क्योंकि यह भारत की समस्याओं और उनके हल के प्रति हमारी सोच को स्पष्ट करता है| अब तक के हमारे जनप्रतिनिधियों ने तमाम दावों और लोगों की बुनियादी जरूरतों की जानकारी होने के बाबजूद उन्हें पूरा नहीं किया| जिससे लोगों में घोर निराशा और बहुत असंतोष है| यह संकल्प पत्र कोई झूठे वायदों पर आधारित नहीं है, बल्कि हमने इसमें केवल उन्ही समस्याओं को शामिल किया है जिनका सच में समाधान किया जा सकती है और इसके लिए हमने गहन धरातलीय शोध किया है|
     हिमालयी बर्फ के ग्लेशियर न सिर्फ हिमालयी राज्यों के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए जीवन देने का काम करते हैंइन ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियाँ भारत के पर्यावरण संतुलन को  बनाये रखने का काम करती हैं| सम्पूर्ण भारत की कृषिवनपशु-पक्षीजीव-जन्तुवों का अस्तित्व इन्हीं नदियों के कारण है| ग्लेशियर नहीं होंगे तो भारत एक रेत के टीले में तब्दील हो जायेगा| अब तक जनप्रतिनिधि व लोकसेवक इसकी संवेदनशीलता नहीं समझ पाये हैं जिस कारण आज इन पर खतरा मंडरा रहा है | 
      उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य के साथ-साथ अत्यधिक संवेदनशील अन्तराष्ट्रीय सीमांत प्रदेश भी है, इसकी अनदेखी भारत के लिए न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से, बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी घातक है| उत्तराखंड में भ्रष्टाचार में लिप्त जनप्रतिनिधियों, पूंजीपतियों और ठेकेदारों ने सरकारी तंत्र से मिलीभगत करके प्रकृति का घोर अनैतिक दोहन किया है| बारूदी विस्फोटों से सड़कें, भवन और सुरंग का निर्माण पहाड़ी जिलों के लिए विनाशक साबित हुवा है पहाड़ छलनी होकर दरक रहे हैं जिस कारण लगातार बादल फटने, भूस्खलन की घटनाएँ आम बात हो गई हैं और इसी का नतीजा है कि उत्तराखंड को इतनी बड़ी त्रासदी झेलनी पढ़ी| आजीविका के लिए स्थानीय लोगों के पलायन के कारण पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया है |
पर्यावरण संतुलित उत्तराखण्ड के विकास का प्रारूपउत्तराखंड का विकास प्राकृतिक संतुलन के साथ-साथ जनहितकारी किया जाये, इसके लिए कम से कम न्याय पंचायत स्तर पर मूलभूत सुविधायें व रोजगार का प्रारूप तैयार किया जाना आवश्यक होगा| इसका मूल कारण है, उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है जहाँ छोटे छोटे गाँव हैं | प्लायन के कारण परिवारों की संख्या बहुत कम है ऐसे में प्रत्येक गाँव में शिक्षा, चिकित्सा व् वित्तीय सेवायें देना सम्भव नहीं है | इसलिए कम से कम प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर विकास का प्रारूप खड़ा किया जाये| उत्तराखंड में कुल 670 न्याय पंचायतें हैं जिसमें एक न्याय पंचायत के अंतर्गत 10 से 15 ग्राम पंचायतें आती हैंस्थानीय जनता एवं कर्मचारियों को पर्यावरणीय संतुलित मूलभूत सुविधाएँ और रोजगार के साधन न्याय पंचायत स्तर पर उपलब्ध करवाने होंगे:- 

1. गुणवत्ता युक्त शिक्षा
प्रदेश के सबसे अच्छी प्रतिभा वाले शिक्षक, सबसे अधिक संख्या में शिक्षा विभाग में कार्यरत है परन्तु फिर भी शिक्षा का स्तर इतना गिर चुका है कि सरकारी शिक्षा को लगभग फेल करार किया जा रहा है| सरकारी स्कूल केवल गरीब वर्ग के बच्चों के लिए ही पढ़ाई का जरिया वन चुके हैं. व्यक्ति थोड़ा भी पैसे वाला होता है तो वह बच्चों को निजी स्कूलों में ही पढ़ाना चाहता है. इस सब में नेताओं-नौकरशाहों और शिक्षा माफिया का गठजोड़ कार्य कर रहा है. शिक्षा में मामूली सुधार नहीं सम्पूर्ण शिक्षा के ढांचे में परिवर्तन की जरूरत है, जिसके लिए निम्नवत कार्य किया जाए.
  • स्कूली शिक्षा, कृषि, योग, संस्कृति, आयुर्वेदिक, उच्च, तकनिकी, खेल एवं चिकित्सा शिक्षा का समायोजन किया जाये और प्रदेश में जगह जगह स्थापित किये गए अनावश्यक स्कूल/कालेजों आदि को बंद कर आदर्श शिक्षा परिसर का नया ढांचा प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर तैयार किये जाएँ व प्राइवेट स्कूलों से बेहतर गुणवता युक्त शिक्षा एंव ढांचा खड़ा किया जाए, साथ ही निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए निति बनाई जाये|
  • त्वरित सुधार हेतु पहला कदम समस्त जनप्रतिनिधियों, लोकसेवकों, अधिकारीयों एवं सरकारी ख़जाने से वेतन लेने वाले कर्मचारियों को अपने नौनिहालों को अपने नजदीकी सरकारी स्कूलों में भर्ती करना अनिवार्य किया जाये, यदि एक माह के भीतर जिसने ऐसा नहीं किया तो उसका वेतन रोक दिया जाए और तीन माह तक भी एसा न करने पर सेवा समाप्त कर त्वरित नया विकल्प रखा जाए|  जब मंत्री, विधायक, अधिकारी, कर्मचारी, सबके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढेंगे तो गुणवत्ता में सुधार आना स्वाभाविक है|
2. गुणवत्ता युक्त चिकित्सा स्वास्थ्य
प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था के बुरे हाल हैं, दुर्भाग्य यह है कि राज्य बनने के बाद तो स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर और भी गिर गया है. आयुष के नाम पर सरकार जनता को धोका दे रही है, चिकित्सा शास्त्र में आधारहीन सैधांतिक विवेध के बावजूद कथित आयुर्वेद और कथित एलोपैथी को प्रतिद्वंदी बनाकर देश की श्रमजीवी आम जनता को संविधान प्रदत आधारभूत वैज्ञानिक चिकित्सा सुविधाओं से वंचित कर सांस्कृतिक संवर्धन की आड़ में वोट ध्रुविकरण का सडयंत्र करती आ रही है| जबकि आवश्यकता इस बात की है कि एक ही चिकित्सा शास्त्र के प्राचीन एवं आधुनिक विज्ञानं को समाहित कर अखिल भारतीय स्तर पर एक सर्वस्वीकार्य एंव धरातल पर जनउपयोगी चिकित्सा पाठ्यक्रम तैयार किया जाये | उल्लेखनीय है कि आज़ादी के बाद यह व्यवस्था लागू की गई थी जिसे राजनीतिक लाभ के लिए स्वदेशी विदेशी का जहर फैलाकर बंद कर दिया गया | जबकि चैम्बर के अंग्रेजी शब्द कोष में एलोपैथी का अर्थ निम्न प्रकार से परिभाषित है "THE CURRENT OR ORTHODOX MEDICAL PRACTICE, DISTINGUISHED FROM HOMEOPATHY यानि होमियोपैथी से भिन्न वर्तमान एवं पुरातन/पारंपरिक चिकित्सा कर्म का नाम ही एलोपैथी है"|
  • एलोपेथी, आयुर्वेदिक, होमोपैथी व यूनानी चिकित्सा पद्द्यती का समायोजन कर जनउपयोगी चिकित्सा पाठ्यक्रम तैयार किया जाए व आधुनिक सुविधा यूक्त चिकित्सालय प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर स्थापित किया जाये व प्राइवेट चिकित्सालयों से बेहतर चिकित्सा सुविधा दी जाएँ साथ ही निजी चिकित्सालयों के लिए चिकित्सा निति बनाई जाये|
3. रोजगार से पलायन पर रोक
उत्तराखंड से पलायन रोकने के लिए रोजगार का ढांचा न्याय पंचायत स्तर पर रोजगार परिसर स्थापित कर निम्न प्रकार से खड़ा किया जाये:
  • स्थानीय उत्पादन उद्योग, शब्जी उत्पादन, जड़ी-बूटी उत्पादन, फलोत्पादन  (सेब, अखरोट, माल्टा, आडू, खुमानी, बुरांश, पुलम, चोलू, नाशपाती, आम, लीची, अमरुद, हिंसर, बुरांश, काफल, अन्नार, टिमरू आदि हेतु जलवायु मौजूद)|
  • दुग्ध डेरी, मधु-पालन, काष्ठ-कला, कंडी उद्योग, हथ-करघा उद्योग, भेड़ पालन|
  • साहसिक एवं प्राकृतिक खेल, योग-ध्यान केंद्र, बिक्री केंद्र|
  • पर्यटन हट-नुमा होटल|
  • आवाजाही हेतु ट्रेवल सेवा|
  • लोक कला-लोक फिल्म उद्योग|
  • सूचना एवं सौफ्टवेयर उद्योग|
  • बड़ी जल बिजली परियोजनाओं की जगह स्थानीय जनता की भागीदारी के साथ "रन आफ दा रिवर वाटर" पर छोटी छोटी 10 मेगावाट तक की बिजली परियोजनायें लगाई जायें|
  • नियुक्ति न्याय पंचायत परीछेत्र से ही करके जवाब देहि तै की जाये| आवश्यक हुवा तभी अन्य छेत्रों से नियुक्ति की जाएगी |
  • किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने पर या लापरवाही करने पर सेवा समाप्त व सम्पति जब्त करने तक का कढा प्रावधान किया जायेगा|
4. वित्तीय सेवा
बैंक, सहकारी बैंक, जीवन बीमा, चिकिस्ता बीमा, साधारण बीमा आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर एक वित्तीय परिसर तैयार किया जाये| 

5. खेल
कबडी, गिली-डंडा, पंच-पथरी, खो-खो, फुटबाल, बालीबाल, हाकी, क्रिकेट, बेड-मिन्टन, कुश्ती, बाक्सिंग, टेनिस, स्विमिंग आदि का समायोजन कर प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर खेल परिसर व् खेल मैदान बनाया जायेगा| 

6. आवास
उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारियों को मूलभूत सुविधा न मिलने के कारण हमेशा आम जनता को उसका फल भुगतना पड़ता है और कर्मचारी भी तनाव में रहते हैं जिस कारण सम्पूर्ण क्षेत्र में सरकारी शिक्षा, चिकित्सा आदि धराशाई हो गई है और सरकार असफल प्रयोग कर जनता के धन का दुरूपयोग कर रही है | कर्मचारियों को मूलभूत सुविधायें मिलेंगी तो वो अपने परिवार को साथ रख सकेंगे और जनता को तनावमुक्त होकर सेवा देंगे, इसलिए न्याय पंचायत स्तर पर आवास का प्रारूप निम्न प्रकार से कर्मचारीयों की जवाबदेही के साथ खड़ा किया जाए:
  • कर्मचारी आवास,  छात्र/छात्रा आवास, आवासीय कालोनी |
7. सड़क व भवन निर्माण
सडकों के मौजूदा स्वरुप से  सुविधा कम और नुक्सान अधिक हो रहे है. जहां एक ओर कई क्षेत्र अभी भी सडक मार्गों से नहीं जुड़ पाए हैं, वहीँ सूबे में सड़क बनाने के तरीके अत्यधिक नुकशानदायक हैं. सड़क बनाने के इस तरीके से सम्पूर्ण उत्तराखंड में बहुत तबाही हो रही है. इसलिए
  • उत्तराखंड में सड़क निर्माण रोड मैपिंग के आधार पर किया जाये|
  • किसी भी प्रकार के निर्माण कार्यों में विस्फोटकों का इस्तमाल पूर्णत: बंद किया जाये|
  • निर्माण करने के लिए स्टोन कटर तकनीक का स्तमाल किया जाये|
  • मलबा किसी भी सूरत में पहाड़ों से नीचे नहीं गिराया जाये|
  • मलवा नीचे नदियों के किनारे आने के कारण नदी का प्रवाह बाधित करता है और जहाँ नदी नहीं होती है वहां पेड़-पोधों को नुकशान करता है|
  • सड़क कटान/भवन निर्माण का अतिरिक्त मलवा जहाँ भरान की आवश्यकता है वहां भेजा जाये, जिससे कृषि भूमि की मिटटी को सुरक्षित रखा जा सके|
  • प्रत्येक ग्राम को न्याय पंचायत प्रारूप से व् न्याय पंचायत प्रारूप को दूसरी न्याय पंचायत के प्रारूप से सड़क मार्ग से जोड़ा जाये| 
  • बनी हुयी सडकों की गुणवत्ता का आकलन किया जाए|
  • सड़कों को गढढा रहित और डामरीकृत किया जाए.
8. कृषि, बागवानी, जड़ीबूटी व वनों का चकबंदी कर विकास में योगदान
  • उत्तराखंड में जगह-जगह बिखरी खेती की चकबंदी की जाये|
  • नदियों के पानी को ऊपरी हिस्से तक पहुंचाया जाये|
  • बरसाती पानी का वाटर हारवेस्टिंग के जरिये वाटर बैंक बनाया जाये व असिंचित भूमि पर फलदार वृक्षों, बागवानी व कृषि के लिए पानी की कमी न हो जिससे पर्यावरणीय संतुलित रोजगार खड़ा किया जाये|
  • जंगलों में आग का मूल कारण चीड़ की पत्तियां हैं जिससे हर साल प्राणी जीवन समाप्त हो रहा है और पर्यावरण के लिए अत्यधिक घातक हो रहा है|
  • चीड़ के पेड़ पर्यावरण के लिए विनाशक बन गए हैं इसे फैलने से रोका जाये|
  • दूरगामी लाभ-दायक और पर्यावरणीय संतुलन बनाने वाले फलदार एवं चौड़ी पत्ती के पेड़ों को गांवों से लेकर जंगलों तक लगाया जायेगा जिससे जंगली जानवरों को भरपूर पोषण जंगल में ही मिल जाये और वो आबादी वाली जगहों में न आयें| 
  • भूस्खलन को रोकने और पानी के श्रोतों को जिन्दा रखने हेतु वृक्षारोपण किया जाए |
  • ढालदार जगह पर दूबघास रोपण आवश्यक है ताकि मिटटी को बांधा जा सके और भू-स्खलन रुके |
  • किसानों को फसल का उच्चतम मूल्य एंव समय से भुगतान किया जाए व किसानों को अन्य सुविधायें दी जायें|
  • वन विभाग, फल संरक्षण, वन-निगम व् कृषि विभाग का समायोजन कर एक शसक्त विभाग का ढांचा खड़ा किया जाए |
  • जंगली जंतुओं के आतंक से पहाड़ की खेती बर्वाद हो गयी है इस के कारण लोग गाँव छोडने  के लिए मजबूर हैं. वन अद्धिनियम के पहलुओं की जांच कर जंतुओं जैसे बंदरों, सुअरों आदि की नसबंदी के लिए कार्य योजना तैयार की जाये.
  • रोजगार और पर्यावरण: पहाड़ों पर पर्यावरण को रोजगार से जोड़ना व पहाड़ी ढालों पर वन लगाना आवश्यक है, इसमें लगे नौजवानों को ग्रीन बोनस के माध्यम से रोजगार देना एक क्रांतिकारी कदम होगा. रोजगार बढ़ेंगे तो पलायन रुकेगा, भूमि के पानी में बढ़ोतरी होगी, भूस्खलन कम होंगे, पशु चारा की समस्या दूर होगी.
  • इंधन के लिए ग्रामीणों की वनों पर निर्भरता समाप्त करना अत्यंत आवश्यक है. वन बचाने के लिए उत्तराखंड को अधिक सब्सिडी के साथ इंधन गैस के कोटे को बढ़ाया जाए.
9. ग्राम व वार्ड बने पर्यावरणीय संतुलित रोजगार का श्रोत
  • उत्तराखंड सहित हिमालय के सभी राज्यों के लिए अलग हिमालयी नीति लागू की जाए.
  • उत्तराखंड प्रदेश जिसका 67% भू-भाग वन छेत्र में आता है जिस कारण हिमालयी राज्यों पर पूरे देश की जीवन डोर टिकी है|
  • पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु उत्तराखंड में निवास करने वाले ग्रामवासियों को गाँव को हराभरा रखने के लिए लक्ष्य निर्धारित कर नियुक्त किया जाये| इससे गाँव के बेरोजगार युवाओं को आजीविका के लिए गाँव में ही रोजगार मिल जाएगा साथ ही पर्यावरण संतुलन भी बना रहेगा| 
  • उत्तराखंड की औषधीय बनस्पतियों के बचाने के तरीके तथा इनसे रोजगार बढ़ाने के लिए इनकी खेती बढाने के लिए सिस्टम बनाने की कोशिश की जायगी.
10. प्राकृतिक आपदा
उत्तराखंड में प्रतिवर्ष प्राकृतिक आपदा की घटनाएं और उनसे निपटने में सरकारों की नाकामी इस प्रदेश का सबसे दुखद पहलू है. परतुं एक ही तरह की आपदा के प्रतिवर्ष आते रहने के बाबजूद भी आज तक की सरकारों द्वारा आपदा प्रबंधन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाएं गयें है जो कि इनकी कामचोरी को बताता है.
  • उत्तराखंड के अन्दर प्रांतीय रक्षक दल, होम गार्ड, एन.सी.सी./ एन.एस.एस. कैडेट, युवक मंगल दल, महिला मंगल दल, पूर्व सैनिक, अर्द-सैनिक, एस.एस.बी. द्वारा ट्रेंड  गुरिल्लाओं की काफी संख्या पहले से मौजूद है और ये सभी स्थानीय निवासी होने के साथ-साथ भोगोलिक परिस्थति से भी अवगत हैं इन्हें और सक्षम बनाने हेतु एन.डी.आर.एफ. के माध्यम से कड़ा प्रशिक्षण दिलवाया जाये और न्याय पंचायत स्तर पर "स्टेट डिजास्टर एंड रिलीफ फोर्स" की जगह "नागरिक, सामाजिक, आपदा एवं पर्यावरण सुरक्षा फोर्स" के रूप में तैयार किया जाये|
  • आपदाग्रस्त क्षेत्रों में संचार व्यवस्था का बड़ा महत्व है. इसके लिए प्रत्येक ग्रामसभा/नगर पालिका के पास एक सेटेलाईट फोन की व्यवस्था की जाये.
  • तुरंत और सार्वजनिक सूचना के लिये कम्युनिटी रेडियो का प्रावधान किया जाए. इससे क्षेत्र के लोग एक दूसरे गाँव से संपर्क में रह सकेंगे.
11. भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न, ट्रैफिक नियंत्रण
  • आज प्रदेश में भ्रष्टाचार, महिला उत्पीड़न, अनियंत्रित ट्रैफिक की समस्या चरम पर है इस पर अंकुश लगाने के लिए सभी थाना, चौकी, ग्रामसभा कार्यालय, छेत्रपंचायत कार्यालय, जिला पंचायत कार्यालय, पटवारी चौकी कार्यालय, डी.एम्. कार्यालय, सी.डी.ओ. कार्यालय आदि सभी सरकारी कार्यालयों एवं चौक-चौराहों में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाये जायें|
  • सभी विभागों में आने जाने के समय को दर्ज करने के लिए बायोमेट्रिक उपकरण लगाये जायें|
  • कर्मचारी/अधिकारीयों के अलग से केबिन की प्रथा बंद कर बड़े-बड़े हाल बनाकर एक साथ हाल में कार्य करने के लिए व्यवस्था की जाए|
12. वित्तीय बोझ रोका जाए
सरकार में बैठे जनप्रतिनिधियों एवं लोकसेवकों ने अपने व अपने चहेतों को लाभ पहुँचाने के लिए छोटे से राज्य उत्तराखंड में अनावश्यक वित्तीय बोझ बढ़ाने के लिए अनावश्यक अत्यधिक विभाग, निगम, प्राधिकरण, आयोग, निदेशालय आदि का ढांचा खड़ा कर रखा है जिसमें ज्यादातर प्रदेश के राजकोषीय घाटे को बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं जिनकी कोई आवश्यकता ही नहीं है ऐसे अनावश्यक विभाग, निगम, निदेशालय, आयोग, प्राधिकरण त्वरित रूप से बंद कर समायोजित किये जाएँ और प्रदेश पर पढ़ने वाले अनवश्यक वित्तीय बोझ को रोका जाए | 

13. ठेकेदारी प्रथा पर रोक
  • आंगनबाड़ी, आशा, भोजनमाता, पी.आर.डी., उपनल, नरेगा में ठेकेदारी में नियुक्त कर्मचारीयों के कार्यों की समीक्षा की जाए और लक्ष्य निर्धारित कर स्थाई किया जाये|
  • आँगन बाड़ी केन्द्रों को गुणवतायुक्त बना कर एवं उनके कार्यों की समीक्षा कर कार्यों के लिए लक्ष्य निर्धारित किया जाये|
  • अल्प अवधि की परियोजनाओं के अलावा ठेकेदारी प्रथा बंद कर सीधी भर्ती के माध्यम से नियुक्तियां की जायें|
  • श्रमिकों के श्रम का उचित मूल्य निर्धारण कर शक्ति के साथ लागू करवाया जाए |
14. उत्तराखंड पंचायती राजएक्ट
  • उत्तराखंड का पंचायती राजएक्ट बनाया जाये|
  • संविधान का 73वां/74वां संसोधन लागू किया जाये|
  • ग्राम स्वराज स्थापित कर प्रशासन की जवाबदेहि जनता के प्रति तय की जाए|
  • जनता को स्वराज का अधिकार दिया जायेगा |
15. जनप्रतिनिधियों की आजीविका के लिए उचित मानदेय
  • जनप्रतिनिधियों के लिए मानक तय किये जायें |
  • ग्राम वार्ड मेंबर से लेकर जिला पंचायत तक को आजीविका के लिए सम्मानजनक मानदेय दिया जाये|
16. राजधानी: विधानसभा, सचिवालय, निदेशालय
  • उत्तराखंड के हर जिले में जनता के साथ मिलकर सर्वे करवाया जाये|
  • उत्तराखंड की स्थाई राजधानी, सचिवालय एवं विभागों के मुख्यालयों को उत्तराखंड की जनता की भावनाओं के अनुरूप एक ही परिसर में बनाया जाये|
  • इससे आम जनता को दर-दर न भटकना पड़े व जनता के कार्य समय से हो सकें साथ ही विभागीय कर्मचारी भी अनावश्यक दौड़ भाग में ही राजस्व एवं समय बरबाद न करें |
17. कार्बन क्रेडिट बोनस एवं सीमांत प्रदेश
हिमालयी व सीमान्त प्रदेश होने के नाते आम जनता की आजीविका व मूलभूत सुविधाओं हेतु केंद्र सरकार उत्तराखंड को विशेष वित्तीय सहायता एंव कार्बन क्रेडिट बोनस दे ताकि हिमालयी प्रदेश का पर्यावरणीय संतुलित ढांचा खड़ा किया जा सके|

18. सार्वजनिक वितरण प्रणाली
प्रदेश में सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के प्रति प्रदेश की जनता में बड़ा असंतोष व नाराजगी  देखने को मिलती हैं क्योंकि ना तो समय पर राशन की उपलब्धता होता है और ना ही उसका वितरण संतोष जनक होता है. राशन की कालाबाजारी की शिकायतें तो आम होती है. इसकी कमियों को दूर करने के लिए सार्वजानिक वितरण प्रणाली खाद्यान/एलपीजी/बीज/खाद आदि को पारदर्शी एवं ऑनलाइन किया जायेगा |

19. भू-कानून
हिमालयी राज्य उत्तराखंड का पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने हेतु बाहरी लोगों द्वारा बसागत रोकने के लिए भूमि की खरीद-फरोखत पर अंकुश लगाया जाए, आवश्यक हुवा तो किराये पर जमीन या भवन दिया जाने का प्रावधान किया जाए|

21. खनन नीति
इस प्रदेश में नदियों से रेत-पत्थर चुगान और खनन पूर्णतः माफिया के हाथ में है. इसमें सरकारी तंत्र नौकरशाह, नेता और ठेकेदार का गठजोर काम करता है. बड़े पैमाने पर हो रहे गैरकानूनी खनन से जहां नदियाँ प्रतिवर्ष अपना रुख बदलती हैं वहीँ निर्माण के लिए जरुरी रेत, रोडी, पत्थर आम आदमी की पहुँच से बाहर हो गया है. इसके लिए:
  • लोगों की सहायता से एक प्रभावी खनन नीति तैयार की जाए.
  • खनन नियमों को तोड़ने के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया जायगा .
  • नदियों में खनन का अधिकार यथा-संभव ग्राम-सभाओं, युवक मंगलदलों, स्वयं सहायता समूहों और महिला मंगलदलों को दिए जायें.
22. ठोस पुनर्वास नीति हेतु प्रयास 
लगातार आपदाओं की मार झेल रहे इस प्रदेश के भूस्खलन वाले क्षेत्रों और टिहरी बाँध जैसी बिजली परियोजनाओं के कारण बेदखल हो रहे लोगों के लिए अभी तक कोई ठोस पुनर्वास नीति का निर्माण नहीं हो पाया है| दोहरी मार झेल रहे इन लोगों की समस्याएं गंभीर हैं और इस मुद्दे पर विचार कर एक ठोस पुनर्वास नीति बनाई जाए |

23. टिहरी हाइड्रो प्रोजेक्ट के कारण बनी झील के कारण उत्पन्न कठिनाइयां और उनका समाधान
असंगत विकास की कठिनाइयां झेल रहा टिहरी व प्रतापनगर क्षेत्र वस्तुतः बेकार नेतृत्व का जीता जागता उदाहरण है. इस क्षेत्र की कठिनाइयों को दूर करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये जायें.
  • प्रतापनगर क्षेत्र हेतु संपर्क सुगम वनाने के लिए पीपलडाली और भल्डियाना क्षेत्र से बड़े पुलों का निर्माण किया जाए.
  • टिहरी झील में बड़े स्टीमरों का आवागमन बढ़ाया जाए.
  • एडवेंचर वाटर स्पोर्ट्स का विकास किया जाए.
  • प्रतापनगर क्षेत्र को अतिरिक्त अनुदान के माध्यम से लोगों का जीवन सुगम वनाया जाए.
  • प्रशिक्षण और आर्थिक सहायता के माध्यम से रोजगार के अवसर बढाये जायें.
  • टेहरी झील में मत्स्य पालन के माध्यम से बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर तैयार किये जायें.
  • टिहरी झील के चारों ओर सुरक्षा दीवार, सड़क, हट-नुमा होटल स्थानीय जनता की भागीदारी से रोजगार खड़ा किया जाये|
24. राज्य आन्दोलनकारियों को न्याय
उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारियों के दोषियों को निष्पक्ष जाँच कर दोषियों को सजा दिलवाने का कार्य किया जाये|

25. महिलायें: उनकी समस्याएं और सुरक्षा
प्रदेश में महिलाओं की स्थिति बेहद सोचनीय बनी है. जहां उन्हें पर्वतीय क्षेत्रों में गरीबी के साथ-साथ रोजमर्रा की परेशानियों जैसे पेयजल, चारा, ईंधन के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती हैं वहीँ उनका सामाजिक जीवन भी कठिन है. पुरुष पलायन की सर्वाधिक मार महिलाओं को ही झेलनी पड़ती है. महिलाओं की यह दशा राजनैतिको की उपेक्षा व कुशासन  का उदाहरण है. महिलाओं की कठिनाई को दूर करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये जायेंगे:
  • गाँवों के इर्द-गिर्द चारा वृक्षों के रोपण के लिये प्रभावी कदम उठाये जायें.
  • स्वरोजगार के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण एवं रोजगार शुरू करने के लिए आर्थिक सहायता का सिस्टम बनाया जाएगा.
  • महिलाओं पर होने वाले अन्याय के लिए अलग से न्यायालयों की स्थापना और तुरंत न्याय का सिस्टम बनाया जाए.
  • शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कर्मियों के लिए विशेष सुरक्षा और सुविधा का प्रावधान.
  • महगाई को कम करके ग्रहणी के बोझ को कम करने का प्रयास किया जाय|
26. शुद्ध पेयजल
  • अलकनंदा, भागीरथी, यमुना, काली नदी, कोसी, और उनकी सहायक नदियों का क्षेत्र होने के बाबजूद भी उत्तराखंड के सैकड़ों गाँव और कसबे पीने के पानी की कमी से जूझ रहे हैं|
  • आजादी के पैंसठ साल बाद भी पीने के पानी जैसी मूलभूत जरुरत से दूर सैकड़ों गाँव हमारे कामचोर जनप्रतिनिधियों की नासमझी बतातें हैं.
  • नदियों के पानी को पहाड़ी भोगोलिक क्षेत्र के ऊपरी हिस्से तक पहुंचाने के लिए कारगर उपाय किये जाएँ एवं सुद्ध पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जाये|
  • पेयजल से जुड़े विभागों को समायोजित कर पेयजल का शसक्त ढांचा तैयार किया जाए|
27. बिजली
उत्तराखंड जल बिजली परियोजनाओं का हब बना है. परन्तु इस प्रदेश के सेकड़ों गांवों में बिजली नहीं है. यही नहीं प्रदेश में जंहा बिजली की लाइन हैं भी वहाँ भी प्रतिदिन कई घंटों तक बिजली गायब रहना आम बात है. इस कमी के मुख्य कारण निम्न प्रकार हैं:
  • जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के सारे नुक्सान तो उत्तराखंड को मिले हैं परन्तु उसके उत्पादन में उत्तराखंड का हिस्सा सिर्फ 12.5% है.
  • बिजली की लाइनों में घटिया निर्माण कार्य एवं सामग्री और रखरखाव की कमी.
  • वितरण में भ्रष्टाचार का ज्यादा होना.
  • बिजली परियोजनाओं में उत्तराखंड का लाभांश दोगुना किया जाये.
  • बिजली पहुँचाने के कारण घाटा और वितरण की कमियों को दूर किया जाए.
  • बिजली से जुड़े सभी विभागों का समायोजन कर एक शसक्त विभाग का ढांचा बनाया जाए|
28. रेलवे 
  • उत्तराखंड के 13 जनपदों के लिए उत्तराखंड का अपना एक डबल लेन रेलवे ट्रैक तैयार किया जाए, जिसमें एक ही ट्रैक सभी 13 जनपदों के प्रमुख पर्यटक स्थलों, शहरों, धार्मिक स्थलों को जोड़ता हो |
  • उपरोक्त ट्रैक पर सुविधाजनक और अच्छी गति की ट्रेन का संचालन किया जाए|  
29. उपरोक्त के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रयास किये जाएँ
  • शहरी क्षेत्र में सीनियर सिटिज़न के लिए मनोरंजन केन्द्र, पार्क व आश्रम बनाए जायें|
  • वृद्धावास्था पेंशन बढाई जाये और उत्तराखंड के सभी बुजुर्ग जिनका आय का कोई साधन नहीं है वो सभी वृद्धा पेंशन के दायरे में लाये जायें|
  • बुजुर्गो और महिलाओं के लिए अलग से हेल्प लाइन प्रारम्भ की जाएँ|
  • सीमान्त क्षेत्रों में हो रहे लोगों के संदिग्ध आगमन की जाँच करने की व्यवस्था की जाये तथा इन क्षेत्रों में सर्वप्रथम पर्यावरणीय संतुलित विकास किया जाए ताकि सर्वप्रथम संवेदनशील क्षेत्रों से पलायन पर रोक लग सकें|
  • जल सरंक्षण की योजना तथा बायोगैस की खपत के लिए कारगर योजना बनाई जाए|

सधन्यवाद सहित,
भार्गव चन्दोला (हिमालय बचाओ आन्दोलनकारी),
1, राजराजेश्वरी विहार, लोवर नथनपुर, पो.औ. नेहरुग्राम पिन: 248001
आप अपने सुझाव email करें: bhargavachandola@gmail.com या सम्पर्क करें 09411155139
www.bhargava-chandola.blogspot.com, Facebook: Bhargava Chandola, Twitter: BhargavChandola 

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

ये कैसा लोकतंत्र ? जिसमें जनता को बना दिया न्यायपालिका,कार्यपालिका एवं विधायिका का गुलाम आखिर जनता के हाथ में है क्या ?

ये कैसा लोकतंत्र ? संविधान बनाने वालों ने सबसे बड़ा धोका जनता को दिया है आखिर संविधान बनाते समय उन्होंने जनता के हाथों में क्या अधिकार दिया है ?  न्यायपालिका, कार्यपालिका व् विधायिका  के हाथों जनता को गुलाम बना कर रख दिया गया | अगर संविधान में ग्राम विकास अधिकारी, शिक्षक, डाक्टर, इंजीनियर, लोकसेवक, कलर्क, चपरासी, वैज्ञानिक, न्यायाधीस, डी.एम्.,एस.डी.एम् सबकी जवाबदेही जनता के प्रति होती और सभी की चरित्र रिपोर्ट भरने का अधिकार आम जनता की खुली सभा में जनता को होता, प्रत्येक कर्मचारी की हर तीन माह में समीक्षा होती, और उसी के अनुरूप जनता सरकारी कर्मचारी को प्रोत्साहित और सजा देती ऐसे अधिकार जनता के हाथों में होते तो न तो भ्रष्टाचार पनपता और न ही कोई कामचोरी कर पाता ! मगर संविधान में जनता को तो केवल ठेंगा दे रखा है फिर कहाँ से सही काम होंगे ? सभी कर्मचारी जो कि जनता के दिए करों से वेतन, भत्ते और सुविधाएँ लेते हैं वो जनता के प्रति नहीं अपने उच्च अधिकारी के प्रति जवाबदेह होते हैं और वो अपने उच्च-अधिकारीयों से मिलकर जनता के धन को ठिकाने लगाना, जनता का शोषण करना, माफियाओं को लाभ पहुँचाना, अवैध कब्ज़ा करवाना, अवैध कारोबारियों को लाभ पहुँचाना जैसे कार्य मात्र इसलिए कर पाते हैं क्योंकि उनकी जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती है | इसलिए सब मिलकर आम आदमी का शोषण करते हैं | संविधान में संसोधन और कर्मचारीयों की जवाबदेही जनता के प्रति सुनिश्चित होनी आवश्यक है तभी देश के आम आदमी का शोषण रोका जा सकता है |

सूचना विभाग अख़बारों को विज्ञापन बाँटने वाला दलाल स्ट्रीट का दलाल, जन से नहीं धन से है सम्पर्क

सूचना विभाग का गठन करने के पीछे उद्देश्य रहा होगा कि इस विभाग में कार्यरत्त कर्मचारी देशभर में जनहितकारी योजना, कानून, अधिकारों की सूचना का आदान-प्रदान जन-जन तक पहुँचाने में सहायक होंगे और आम आदमी का जीवन स्तर सुधरेगा| मगर जहाँ तक मैं देख रहा हूँ सूचना विभाग और उसके कर्मचारी जन-जन से नहीं बल्कि छोटे-बड़े अख़बार, पत्रिका, टी.वी. चैनल को जनता के धन को बाँटने वाला दलाल स्ट्रीट का दलाल की भूमिका निभाकर जनता के दिए करों से संग्रहित धन को ठिकाने लगा रहा है और मौजूदा दलों की सरकार के घपले-घोटालों को दबाने-छिपाने का माध्यम बना है |  

सूचना विभाग को चाहिए वो जन-धन का दुरूपयोग करना बंद करे और जनता को जनउपयोगी सूचना भेज जन-जन को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करे | देश भर में सूचना विभाग का विस्तार जिला स्तर तक हो चुका है जिसके माध्यम से आम जनता जागरूक होकर अपने अधिकारों के बारे में जानकारी हासिल कर बेहतर जीवन-यापन कर सकती है | प्रत्येक राज्य में सूचना विभाग अपनी मासिक पत्रिका निकालती है जिसमें मात्र मौजूदा पार्टी की सरकार की चापलूसी की ख़बरें और चित्रों का प्रकाशन होता है | सूचना विभाग को चाहिए वो अपने पत्रकारों का सही दिशा में उपयोग करे और ब्लाक और ग्राम स्तर तक सूचना विभाग का ढांचा मजबूत कर जनता की समस्या जाने और देश और राज्य में कानून में मौजूद समस्या का समाधान के बारे में जन-जन को जागरूक करे ताकि आम आदमी को बेहतर मूलभूत सुविधाएँ और न्याय मिल सके | आज देश का आम आदमी जानकारी के अभाव के कारण उत्पीड़न का शिकार होने के लिए मजबूर है अगर आम आदमी को उसके अधिकारों का पता होगा तो वो उत्पीड़न का शिकार नहीं होगा |

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

"चोर-उच्चके और स्व:महत्वाकांक्षी लोगों के संगठनों का प्रदेश है, मेरे भारत का उत्तराखंड प्रदेश"

आज एक बात पर गौर किया तो देखा उत्तराखंड के तो सभी संगठन एक जैसे हैं ! यहाँ तो स्व:महत्वाकांक्षी गुंडे, मवालियों की फ़ौज भरी पढ़ी है, जो केवल अपने लिए ही सोचते हैं, फिर चाहे उसमें समाज का, प्रदेश का कितना भी नुकशान क्यों न हो रहा हो| 
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आप ही बतायें इनमें किस छेत्र का संगठन ऐसा है जो निर्विवाद हो ? और सामाजिक सरोकारों के लिए ब्यक्तिगत स्वार्थों को आगे न लाता हो ?
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हर तरफ़ एक से बढ़कर एक स्व:महत्वाकांक्षी लोग भरे पढ़े हैं फिर चाहे
राजनीतिक संगठन हों (कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, यूकेडी, AAP)
सांस्कृतिक संगठन हों,
प्रेस मीडिया संगठन हों,
सामाजिक संगठन हों,
कर्मचारी संगठन हों,
श्रमिक संगठन हों,
ब्यापारी संगठन हों,
शिक्षक संगठन हों,
चिकित्सा संगठन हों,
बेरोजगार संगठन हों,
महिला संगठन हों,

सैनिक संगठन, 
अर्द्सैनिक संगठन, 
यूवा संगठन हों,
अल्पसंख्यक संगठन हों,
सर्व-समाज संगठन हों ?
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सबके अन्दर तो गुटबाजी कूट-कूट के भरी पढ़ी है | कोई ऐसा संगठन बता दो जिसमें चोर-उचक्के स्व:महत्वाकांक्षी लोग न हों और उन्होंने प्रदेश को गर्त में ले जाने में अपनी भूमिका न निभाई हो ?
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मोटी बुद्द्धि और भूषा भरे भेजे में आखिर ये बात कब आएगी ? कि प्रदेश का सर्वांगीण विकास तभी संभव है जब हम ब्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को त्याग कर, टांग खिंचाई न कर पूरी मेहनत से, ईमानदारी से प्रदेश के लिए कार्य करें |