रविवार, 10 अगस्त 2014

राखी बांधते और बंधवाते समय संकल्प लें जो प्रतिज्ञा हम स्कूल प्रागंण में बोलते आये हैं

भारत मेरा देश है| 
सभी भारतीय मेरे भाई-बहन हैं| 
मुझे अपने देश से प्यार है|
अपने देश की समृध तथा विविधताओं से विभूषित परमपराओं पर मुझे गर्व है|
मैं हमेशा प्रयत्न करूँगा/करुँगी कि उन परमपराओं का सफल अनुयायी बनने की क्षमता मुझे प्राप्त हो|
मैं अपने माता-पिता, गुरुजनों और बड़ों का सम्मान करूँगा/करुँगी और हर एक से सौजन्यपूर्ण व्यवहार करूँगा/करुँगी|
मैं प्रतिज्ञा करता/करती हूँ कि मैं अपने देश और अपने देशवासियों के प्रति निष्ठा रखूँगा/रखूंगी| उनकी भलाई और समृद्धि में ही मेरा सुख निहित है|
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हर रोज ये प्रतिज्ञा स्कूल प्रागंण में लेने के बावजूद आज देश में भ्रष्टाचार, बलात्कार, लूट, हत्या, दंगे, कर चोरी, चेन स्नेचिंग, कबूतर बाजी, मिलावटखोरी, छेड़खानी, आदि चरम पर है, फिर इस प्रतिज्ञा के क्या माइने रह जाते हैं ? हमें इस प्रतिज्ञा को पढ़वाते समय गुरुजनों ने इसकी संवेदनशीलता को नहीं समझाया ये उनकी भूल रही और हमने कभी स्वयं भी इसकी संवदनशीलता को नहीं समझा ये हमारी भूल रही ?

आज रक्षा बंधन का पर्व है, आज बहने भाई को इस आशा के साथ रक्षा सूत्र बांधती हैं कि उनका भाई हर दुःख-सुख में बहनों के साथ खड़ा होगा, इस प्रकृति और देश की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहेगा, मगर अपने दिल पर हाथ रख कर पूछें क्या हमने कभी ऐसा किया है? फिर ऐसे पर्वों का क्या महत्व रह जाता है? 
जिस प्रकार आज देश - समाज  की स्थिति है, उसे देखकर लगता है, ऐसे पर्वों का बंद होना ही बेहतर है या लोग राखी बांधते और बंधवाते समय संकल्प लें जो प्रतिज्ञा हम स्कूल प्रागंण में बोलते आये हैं, हम उस पर अमल करेंगे |
#भार्गव चन्दोला

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