मंगलवार, 16 सितंबर 2014

भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी को उनके जन्मदिन के अवसर पर चाइना ने दिया तौफा

बब्बर शेर भारत के प्रधानमंत्री माननीय Narendra Modi जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई, साहेब अख़बारों में पढ़ रहा हूँ चाइना की सेना के 300 जवानों ने 100 भारतीय सैनिकों को बंधक बना लिया है, साथ लद्दाख के देमचोक इलाके में चाइना की आम जनता ने घर बनाने शुरू कर दिए हैं और भारत द्वारा निर्माणाधीन नहर तक का काम रुकवा दिया है, साहेब ये भारत की जनता को आपके जन्मदिन के अवसर पर कैसा तौफा दे रहा है ? साहेब आपने कहा था "न किसी को आँख दिखायेंगे, न किसी को आँख दिखाने देंगे", साहेब ये चाइना वाले तो छाति में आकर बैठ गए, साहेब जल्दी  कुछ करो नहीं तो "अच्छे दिनों" पर चाइना कब्ज़ा कर लेगा....

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

"जम्मू-कश्मीर में प्रकृति के तांडव के बाद जनहित में एक गम्भीर सूचना"

मित्रों जम्मू-कश्मीर में भयानक आपदा आई है जिससे वहां का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है, ऐसे में वो चील-कौवे भी मंडराने लगे हैं जो ऐसे अवसर पर पीड़ितों की मदद करने के नाम पर भांति-भांति की दुकाने खोलकर बैठ जाते हैं, जिनका केवल एक ही मकसद होता है आपदा के नाम पर अपने लिए सम्पदा जोड़ना |
16-17 जून वर्ष 2013 में उत्तराखंड में भी भयानक तांडव प्रकृति ने दिखाया था जिसमे अलग-अलग तरीके से लूट-खसोट आज भी बदस्तूर जारी है| इस क्रम में सबसे ऊपर ईमानदार पार्टी होने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी है जिसने आपदा पीड़ितों के नाम पर चंदा एकत्र करके विश्वभर के दानदाताओं की भावनाओं के साथ कुठाराघात किया है, सबूतों के साथ पूर्ण सच्चाई जानने के लिए आप निम्न लिंक पर जाकर देख सकते हैं:
http://bhargava-chandola.blogspot.in/2014/08/16-17-2013.html
मित्रों इसलिए मेरा आप सभी से निवेदन है आप आपदा पीड़ितों की सहायता करें, मगर या तो सरकारी ख़जाने में जमा करके जिसका आप सूचना के अधिकार के माध्यम से कल के दिन पर हिसाब भी मांग सकते हैं या स्वयं पीड़ितों के पास जाकर उनकी मदद करें |
स्नेहपूर्ण जनहित अभिलाशी,
भार्गव चन्दोला (हिमालय बचाओ आन्दोलनकारी)
पूर्व प्रदेश सचिव, आम आदमी पार्टी उत्तराखंड

हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण की अनदेखी से होगा प्राकृतिक तांडव

कश्मीर में आपदा, उत्तराखंड में आपदा, हिमाचल में आपदा, पाकिस्तान में आपदा, चाइना में आपदा, बांग्लादेश में आपदा.... क्या अब भी महान देशभक्तों को किसी वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता है ? अब तो मूर्खों को भी ये समझ आ गया होगा कि इतनी आपदायें हिमालयी क्षेत्र में अत्यधिक मानव दखल, कंक्रीट के जंगल, विस्फोटक, बड़ी जल विधुत परियोजनाएं और उनका मलबा यहाँ की पारिस्थितिकी के लिए अत्यधिक नुकशानदायक है, हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण की अनदेखी करना हर वर्ष कहीं न कहीं तांडव करता रहेगा..

शनिवार, 6 सितंबर 2014

"जल-जीवन बचाने के लिए बचाना होगा हिमालय" - हिमालय दिवस 9 सितम्बर

हम हर वर्ष 9 सितम्बर को हिमालय दिवस के रूप में मनाते हैं, हिमालय मतलब भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, चाइना आदि देशों का जीवनदाता, अगर हिमालय न होता तो इस छेत्र का भी कोई अस्तित्व न होता और जिस दिन हिमालय नहीं होगा उस दिन इन देशों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा और ये देश पानी के आभाव के कारण रेत के टीले में तब्दील हो जायेंगे | इसलिए हमें हिमालय को समझना होगा और समझना होगा हिमालय का हमारे जीवन में क्या महत्व है? हिमालय के ग्लेशियरों से ही नदियों का अस्तित्व है जो इन ग्लेशियरों से निकलकर प्राकृतिक संतुलन बनाने का काम करती हैं, इनसे ही पीने, कृषि और पेड़-पौधों को जल की आपूर्ति होती है और वही पेड़-पौधे हमें आक्सीजन देते हैं अगर ये क्रम टूट गया तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा| आज हिमालय पर लगातार ख़तरा मंडरा रहा है, मनुष्य विकास की अंधी दौड़ में हिमालय की संवेदनशीलता की अनदेखी कर रहा है|
      पहाड़ों पर अत्यधिक मानव दखल के कारण आज हिमालय का अस्तित्व मिटने के कगार पर है जिसका वीभत्स नजारा वर्ष 2013 के जून माह की 16-17 तारीख को केदारनाथ, लामबगड़, धारचूला, उत्तरकाशी, गोविन्दघाट आदि क्षेत्रों में देखनो को मिला और पिछले कुछ सालों से चीन, नेपाल, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि देशों में हर साल हिमालय में हो रहे परिवर्तन के कारण भयानक आपदा आ रही हैं| हिमालय को सुरक्षित रखने के लिए सभी देशों को कारगर कदम उठाने पड़ेंगे, सीमांत जनपदों में विस्फोटकों का स्तमाल पूर्ण रूप से रोकना होगा, धार्मिक एवं पर्यटन यात्रा सीमित एवं प्राकृतिक संतुलित करनी होगी, प्राकृतिक संतुलन वाला विकास ही हिमालय को बचाने में कारगर हो सकता है|
      इतना ही नहीं आम देशवाशियों को अपने पारिवारिक उत्सवों पर पर्यावरण एवं हिमालय को सुरक्षित रखने वाले कदम उठाने होंगे, देशवाशियों को शादी-विवाह, जन्मदिन, तीज-त्यौहार आदि में अपने परिवार के साथ अपने आस-पास के क्षेत्रों में कम से कम 5 और अधिकतम अपनी छमता अनुसार फलदार वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करने का संकल्प करना होगा, इससे एक ओर जहाँ प्राकृतिक पर्यावरणीय संतुलन बना रहेगा वहीँ दूसरी तरफ उनके ऐसा करने से भूखे मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों के लिए भोजन की प्राप्ति होगी, साथ ही देशवाशी अपने और अपने परिवार की इस प्रकृति के प्रति नैतिक जिम्मेदारी भी पूरी करेंगे| इतना ही नहीं एसा करने से देशवाशियों के अन्दर अच्छे संस्कार आयेंगे, और वो एक दुसरे से स्नेह करेंगे व एक दुसरे के प्रति जिम्मेदारी महसूस करेंगे| इस प्रकार शादी, जन्मदिन, तीज-त्यौहार मनानें से देशवाशियों के परिवारों की ख़ुशी कई गुना बढ़ेगी और उन्हें आत्मिक शान्ति का एहसास होगा | जब इसी प्रकार सभी देशवाशी अपने परिवार के सदस्यों के साथ हर वर्ष उत्सव मनायेंगे तो कुछ ही सालों में उनके आस-पास और उनके जीवन में एक बढ़ा बदलाव उन्हें अपनी आँखों से देखने को मिलेगा, हिमालय को बचाने के लिए इससे ज्यादा प्रभावशाली कदम दूसरा नहीं हो सकता है|
      सरकारों को पहाड़ी एवं मैदानी क्षेत्रों में कंक्रीट के जंगल सीमित करने होंगे आवासीय कालोनियों में पेड़-पौधे ज्यादा से ज्यादा हों इसके लिए कठिन नियम बनाने होंगे| प्रत्येक भवन स्वामी के लिए उसके भूखंड पर कम से कम 20% भूमि बागवानी, गार्डन और पेड़-पौधों के लिए छोड़ना अनिवार्य करना होगा| 
      देश की सरकारों को स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, पर्यावरण दिवस, पृथ्वी दिवस, शिक्षक दिवस आदि दिनों में देशभर में फलदार पेड़ों का वृक्षारोपण, सफाई अभियान चलाकर इन दिवसों का सकारात्मक प्रयोग करना होगा, ताकि इन दिवसों पर वृहद् स्तर पर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कारगर कदम उठाये जा सकें |
      हिमालयी क्षेत्र में अगर केवल उत्तराखंड की बात करें तो पहाड़ों में गहरी जड़ों वाले पौधों को बढ़ावा देना होगा, फलदार एवं चौड़ी पत्ती के पौधों को बढ़ावा देना होगा, जिससे वो मिट्टी को भू-स्खलन होने से बचा के रख सकें| आज चीड़ का पेढ़ सम्पूर्ण उत्तराखंड के न केवल पर्यावरण के लिए घातक है, बल्कि हर साल भभकते जंगलों, मानव, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, पेड़-पौधों आदि अन्य जातियों की हत्या का दोषी भी है, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मुख्यसचिव, वन-प्रमुख, वन-सचिव को बार-बार इससे हो रहे खतरे से लगातार अवगत करवाने के लिए सुझाव भेजे, मगर उनका जो जवाब था मुझे हास्यास्पद लगा उनका कहना है चीड़ से लिसा और इमारती लकड़ी मिलती है जिससे हर वर्ष 54 करोड़ का राजस्व लाभ होता है, जबकि यहाँ बता दूँ हर वर्ष इसी चीड़ की आग की आड़ में 16 करोड़ रूपये तो आग बुझाने के मद में खर्च किये जाते हैं और जो पेड़ केवल कागजों में लगाये जाते हैं, उनकी कभी पोल न खुल जाए इसलिए उनको भी इसी चीड़ के पत्तों की आग में दफ़न कर दिया जाता है| चीड़ का पेड़ भी अनोखा है एक तो चीड़ का फल पेड़ में ही पक जाता है, दूसरा उसके बीज हवा के बहाव के साथ ही दूर-दराज तक अपने-आप पहुँच जाते हैं, चूँकि इसको पानी की कम आवश्यकता पढ़ती है इसलिए ये हर जगह पनप जाता है, मगर जड़ें कमजोर होने के कारण ये कभी भी धराशाई हो जाता है जिस कारण भू-स्खलन अत्यधिक बढ़ जाता है| चीड़ जिस तेजी से कृषि भूमि, बांज के जंगलों, देवदार के जंगलों में पनप रहा है, उससे पहाड़ों की कृषि, बागवानी, बांज-बुरांश, देवदार, फलदार पेड़ एवं चारा पत्ती आदि के लुप्त होने का खतरा अत्यधिक बढ़ गया है, त्वरित रूप से चीड़ के पेड़ों को रोक कर पहाड़ों में कृषि, बागवानी, बांज-बुरांश, देवदार, फलदार पेड़ एवं चारा पत्ती को युद्ध स्तर पर बढ़ावा नहीं दिया गया तो परिणाम भयावह होंगे |
       
स्नेहपूर्ण जनहित अभिलाशी,
भार्गव चन्दोला (हिमालय बचाओ आन्दोलनकारी)
सामाजिक, आर.टी.आई. एवं राजनीतिक कार्यकर्त्ता,
1, राजराजेश्वरी विहार, नथनपुर, देहरादून, संपर्क न. 9411155139 
email: bhargavachandola@gmail.com Blog: bhargavachandola.blogspot.com

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

आम आदमी पार्टी की निर्लजता की मिशाल - चंदा जुटाऊ - चंदा खाऊ पार्टी के लुटेरों से सावधान

आम आदमी पार्टी की बेमानों की मण्डली ने मेरे द्वारा 23 August, 2014 ko किये गए खुलासे के बाद पिछले वर्ष 16-17 जून, वर्ष 2013 में विश्वभर के दानदाताओं से उत्तराखंड के आपदा पीड़ितों के नाम पर एकत्र किये गए आनलाइन 15 लाख और नगद लाखों रूपये चंदे में से मात्र 2,63,000/- (दो लाख त्रेसठ हज़ार रूपये) का हिसाब सार्वजानिक किया है |
दोस्तों जब डेढ़ साल पहले चंदा इतना ज्यादा आया था तो बाकि पैसे पर क्यों कुंडली मारी गई ?
उपरोक्त हिसाब भी जब मैंने सार्वजानिक रूप से खुलाशा किया तब जाकर सार्वजानिक किया गया और उपरोक्त पैसे को देने से पहले आपदा समिति की कोई बैठक नहीं की गई क्या आम आदमी पार्टी आपदा समिति अध्यक्ष ने मन मर्जी से पैसा बांटकर अपराध नहीं किया है ? क्या आम आदमी पार्टी आपदा समिति की निजी कंपनी है ?
आपदा समिति अध्यक्ष ने डेढ़ वर्ष में क्यों नहीं आपदा समिति की बैठक बुलाई ?
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक, राष्ट्रीय सचिव, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष ने क्यों केंद्र में आपदा पीड़ितों के लिए एकत्र की गई राशि पर कुंडली मार रखी है| क्या ये राष्ट्रीय अपराध उन्होंने जानबूझकर आपदा राशि डकारने के उद्देश्य से नहीं किया है ?
आपदा राशि बाँटने से पहले या ठिकाने लगाने से पहले प्रदेश संयोजक से भी सहमती नहीं ली गई जिन लोगों को आपदा समिति अध्यक्ष ने बिना बैठक बुलाये मन मर्जी से 2 लाख 63 हज़ार रूपये बांटे वो निम्न रूप से हैं:-
1. श्री जे पी बढ़ोनी जी (जिला संयोजक हरिद्वार जिला) 9837342284 को 50,000/- (पचास हजार रुपये मात्र)
2. श्री राकेश सिंह नेगी (जिला संयोजक पौड़ी जिला) 9412029939 को 30,000/- (तीस हजार रुपये मात्र)
3. श्री टिका प्रशाद उनियाल जी (सदस्य प्रदेश कायकारिणी) 9760694482 को 10,000/- (दस हजार रुपये मात्र)
4. श्री हरेन्द्र बिष्ट जी (सदय प्रदेश कार्यकारिणी) 9634346264 को 33,000/- (तैंतीस हजार रुपये मात्र)
5. दीपक सिंह बिष्ट जी (सदस्य उत्तरकाशी जिला) 8126340444 को 25,000/- (पच्चीस हजार रुपये मात्र)
6. श्री आदर्श बाजपेई (तत्कालीन प्रभारी आपदा प्रबंधन एवं राहत सामग्री केंद्र ऋषिकेश) 07275555755 को (20,000/- श्री टिका प्रशाद उनियाल जी के हाथों भिजवाए), + (20,000/- सरदार श्री निर्मल सिंह जुनेजा जी तत्कालीन नगर संयोजक के खाते में ट्रान्सफर करके भिजवाए), + तथा ( 40,000/- मैं खुद उन्हें ऋषिकेश में देकर आया)। इस प्रकार कुल रुपये 80,000/- (अस्सी हजार मात्र)
7. श्री प्रदीप सिंह बुटोला (जिला संयोजक रुद्रप्रयाग जिला) 7351337871 को 15,000/- (पंद्रह हजार रुपये मात्र)
8. श्री गोविन्द सिंह बिष्ट (जिला संयोजक पिथौरागढ़ जिला।) 9456513521 को 20,000/- (बीस हजार रुपये मात्र)

मैंने पूरी टीम के साथ एक दिन घंटाघर के आस-पास आपदा चंदा एकत्र किया था जिसमें 25,490/- रूपये प्राप्त हुए थे, उसी दिन शाम को रिछ्पना पुल के पास 7225/- रूपये एकत्र हुए और सारे पैसे उसी दिन आपदा प्रबंधन समिति अध्यक्ष रनवीर चौधरी के पास जमा करवा दिए थे, इसके अलावा किसी के पास मेरे द्वारा आपदा फण्ड के लिए चंदा एकत्र करने का कोई सबूत हो तो वो तुरंत मेरे खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करवाए....

आपदा समिति अध्यक्ष के पास कुल कितना नगद आपदा पीड़ितों के नाम पर एकत्र हुवा उसका हिसाब भी आम आदमी पार्टी के आपदा समिति अध्यक्ष द्वारा नहीं दिया गया, स्पष्ट है गोलमाल बड़ा किया गया है|
मजे की बात ये है जिनका मैंने आम आदमी पार्टी में रहते हुए ये मानकर स्वागत किया कि वो प्रदेश के संघर्षशील और बुद्धिजीवी लोग हैं, पार्टी से जुड़ने के बाद वो बेमान और भ्रष्ट लोगों के खिलाफ खड़े होंगे और माँ-बाप की तरह हमारे मार्गदर्शक बनेंगे वो सब भी आपदा घोटाले पर मौन साधे हुए हैं और आपदा घोटालेबाजों के साथ खड़े हैं, आपदा घोटाला पर मौन उन सभी तथाकथित बुद्धिजीवियों की महत्वाकांक्षा और पद लोलुपता को भी स्पष्ट दर्शाता है| उनके प्रति हमारी ग़लतफ़हमी दूर हुई... 
हमाम में सब नंगे हैं...

अब आम आदमी पार्टी के रणबांकुरे तय करें वो आखिर किस नैतिकता के साथ व्यवस्था परिवर्तन की इस मुहिम में बेमानों के साथ खड़े हो रहे हैं ? या पद और टिकट के लालच के कारण मौन रहना है ?

घोटाला करने वाले व पीड़ितों के नाम चंदा एकत्र कर कुंडली मारने वाले बेमानों के अन्दर तो इतना भी साहस नहीं है कि नैतिकता के आधार पर त्याग पत्र ही दे दें|

स्नेहपूर्ण जनहित अभिलाशी,
भार्गव चन्दोला (हिमालय बचाओ आन्दोलनकारी)
सामाजिक, आर.टी.आई. एवं राजनीतिक कार्यकर्त्ता
नोट: विस्तार से सबूत के साथ नीचे दिए लिंक पर देंखें: